८३४ पूंजीवादी उत्पादन कृषि-कान्ति प्रारम्भ हुई और जो १६ वीं शताब्दी में (उसके अन्तिम बशक को छोड़कर) लगभग बराबर जारी रही, उसने माम खेतिहर पाबाबी को जितनी जल्दी गरीब बनाया, उतनी ही बल्बी काश्तकारको धनी बना दिया। सामूहिक जमीन के अपहरण से उसे लगभग एक पैसा खर्च किये बिना अपने पशुओं की संख्या बढ़ाने का मौका मिला और पशुषों की बढ़ी हुई संख्या से उसे अपनी बरती को उपजाऊ बनाने के लिये पहले से कहीं अधिक साव मिलने लगी। १६ वीं शताब्दी में एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व इसके साथ जुड़ गया। उस जमाने में फार्मों के पट्टे बहुत लम्बी अवधि के लिये, और ६६ वर्ष के लिये, लिखे जाते थे। बहुमूल्य धातुओं के मूल्य में और इसलिये मुद्रा के मूल्य में उत्तरोत्तर गिराव पाते जाने से काश्तकारों की चांदी हो गयी। ऊपर हम जिन विभिन्न कारणों की चर्चा कर चुके हैं, उन कारणों के अलावा इस कारण से भी मजदूरी की दर कम हो गयी। अब मजदूरी का एक भाग फार्म के मुनाफे में जुड़ गया। अनाज, ऊन, मांस और संक्षेप में कहें, तो खेती की हर तरह की पैदावार के दाम लगातार बढ़ते जा रहे थे। उसका फल यह हुमा कि काश्तकार के किसी यत्न के बिना ही उसकी नकब पूंजी में बहुत इजाफा हो गया। और उसे को लगान देना पड़ता था, वह चूंकि मुद्रा के पुराने मूल्य के अनुसार ही लिया जाता था, इसलिये वह असल में कम हो गया। इस प्रकार, काश्तकार लोग अपने मजदूरों और समीवारों, दोनों - 1हैरिसन ने अपनी रचना "Description of England" ('इंगलैण्ड का वर्णन') में कहा है कि "पुराना लगान , सम्भव है, चार पौण्ड से बढ़कर चालीस पौण्ड हो गया हो, पर यदि वर्ष के अन्त में काश्तकार के पास छः या सात साल का लगान-पचास या सौ पौण्ड नहीं बच रहते, तो वह समझेगा कि उसे बहुत कम लाभ हुआ है।" १६ वीं शताब्दी में मुद्रा के मूल्य-हास का समाज के विभिन्न वर्गों पर क्या प्रभाव पड़ा, har fage à "A Compendious or Briefe Examination of Certayne Ordinary Complaints of Divers of our Countrymen in these our Days. By W. S. Gent- leman" ['हमारे विभिन्न देशवासियों की वर्तमान काल की कुछ साधारण शिकायतों का सारभूत अथवा संक्षिप्त विवेचन।' -डब्लयू० एस०, जैटिलमैन , द्वारा लिखित।] (London, 1581) देखिये। यह रचना संवाद के रूप में लिखी गयी है। इसलिये बहुत समय तक लोगों का यह विचार रहा कि उसके रचयिता शेक्सपियर हैं, और यहां तक कि १७५१ में भी वह शेक्सपियर के नाम से प्रकाशित हुई थी। वास्तव में उसके लेखक विलियम स्टेफडं थे। इस पुस्तक में एक स्थल है, जहां सूरमा सरदार (knight) इस प्रकार तर्क करता है : सूरमा सरकार: मेरे पड़ोसी, जो काश्तकारी करते हैं, और पाप, जो कपड़े का व्यापार करते हैं, और पाप भी, जो कसेरे है, तथा अन्य सब कारीगर, पाप सब खूब कमा रहे हैं। क्योंकि तमाम चीजें पहले के मुकाबले में जितनी महंगी हो गयी है, पापने अपने सामान के दाम और अपनी सेवामों के दाम, जिन्हें पाप फिर बेच देते हैं, उतने ही बढ़ा दिये हैं। लेकिन हमारे पास तो ऐसी कोई भी चीज बेचने के लिये नहीं है, जिसके दाम बढ़ाकर हम उन चीजों के बढ़े हुए दामों की क्षतिपूर्ति कर लेते, जो हमें अवश्य ही फिर परीदनी पड़ेंगी।" एक और स्थल है, जहां सूरमा सरदार डाक्टर से पूछता है: "कृपा करके यह तो बताइये कि वे कौन लोग हैं, जिनका माप जिक्र कर रहे है । और सबसे पहले, वे लोग कौनसे हैं, जिनके धंधे में, पापके विचार से, नुकसान नहीं हो सकता?" -गक्टर: “मेरा . ॥ प्राप, - . -
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