कृषि-क्रांति की उद्योग में प्रतिक्रिया ८३७ . . . पौर क्योंकि न केवल खेतिहर मजदूरों से पहले से अधिक तीव्र परिषम कराया जाता था, बल्कि वे उत्पादन के विस क्षेत्र में अपने लिये काम करते थे, वह अधिकाधिक संकुचित होता जाता था। इसलिये, नब बेतिहर पाबाबी के एक भाग को भूमि से मुक्त कर दिया गया, तो पोषण के भूतपूर्व साधनों का भी एक भाग मुक्त हो गया। ये साधन प्रब अस्थिर पूंजी के भौतिक तत्वों में स्पान्तरित हो गये। किसान, जिसकी सम्पत्ति छिन गयी थी और जो अब बरथर की ठोकर साता धूम रहा था-उसे अब अपने नये मालिक-प्रौद्योगिक पूंजीपति-से इन साधनों का मूल्य अनिवार्यतः मजबूरी के रूप में प्राप्त करना था। जो बात बीवन-निर्वाह के साधनों के लिये सच है, वही घरेलू लेती पर निर्भर करने वाले उद्योग के कच्चे माल के लिये भी सच है। यह कच्चा माल स्थिर पूंजी का एक तत्व बन गया। उदाहरण के लिये, मान लीजिये कि वेस्टफ़ालिया के उन किसानों के एक भाग को, बो फेरिक द्वितीय के राज्य-काल में फ्लैक्स की कताई किया करते थे, भूमि से खदेड़ दिया जाता है और उसकी सम्पत्ति छीन ली जाती है, और उनका जो भाग वहां बच जाता है, वह बड़े काश्तकारों के खेतों पर मजदूरी करने लगता है। साथ ही फ्लैक्स की कताई और बुनाई के बड़े- बड़े कारखाने खुल जाते हैं, जिनमें वे लोग मजदूरी करते हैं, जो इस तरह "मुक्त" कर दिये गये हैं। प्लंक्स देखने में अब भी पहले जैसा ही लगता है। उसका एक रेशा तक नहीं बदला, मगर अब उसकी देह में एक नयी, सामाजिक प्रात्मा पाकर बैठ गयी है। अब वह कारखाने के मालिक की स्थिर पूंजी का एक भाग बन गया है। पहले वह बहुत से छोटे-छोटे उत्पादकों के बीच बंटा हुमा था, वो खुब उसकी खेती किया करते थे और अपने बाल-बच्चों की मदद से बोड़ा-मोड़ा करके उसे घर पर ही कात गलते थे। अब वह सारा एक पूंजीपति के हाथों में केन्द्रित हो जाता है, वो दूसरे मादमियों से अपने लिये उसकी कताई और बुनाई कराता है। पहले पलेक्स की कताई में बो प्रषिक श्रम खर्च होता था, वह अनेक किसान परिवारों की प्रषिक माय के रूप में साकार हो उठता था; या सम्भव है कि फ़ेरिक द्वितीय के काल में यह प्रशिया के राजा को दिये जाने वाले (pour le roi de Prusse) करों का रूप धारण कर लेता हो। पर अब वह चन्द पूंजीपतियों के मुनाफे का रूप धारण कर लेता है। पर्स और करघे, जो पहले सारे बेहात में वितरे हुए थे, अब मजदूरों और कच्चे माल के साथ चन्द बड़ी-बड़ी श्रम-वारिकों में एकत्रित कर दिये जाते हैं। और ये पलं, करघे और कच्चा माल अब पहले की तरह कताई करने वालों तथा बुनाई करने वालों के स्वतंत्र बीविका कमाने के साधन न रहकर इन लोगों पर हुक्म बनाने और उनका प्रवेतन श्रम पूसने के साधन बन जाते हैं। बड़ी-बड़ी हस्तनिर्माणशालाओं और बड़े-बड़े कामों को देखकर कोई यह नहीं सोचेगा कि उत्पादन के बहुत से छोटे-छोटे केन्द्रों को एक में बोड़ देने से इनका जन्म हुमा है और बहुत से छोटे-छोटे स्वतंत्र उत्पादकों की सम्पत्ति , इस बात पर सर जेम्स स्टीवर्ट ने जोर दिया है। 'पूंजीपति का कहना यह है कि "Je permettrai que vous ayen ldhonneur de me servir, à condition que vous me donnez le peu qui vous reste pour la peine que je prends de vous comimander" [" मैं तुम्हें यह इक्जत बड़गूंगा कि तुमसे अपनी सेवा कराऊंगा, बशर्ते कि तुम्हें हुक्म देने में मुझे जो कष्ट होगा, उसके एवज में तुम्हारे पास जो कुछ बचा है, वह तुम मुझे सौंप दो"]। (J. J. Rousseau, "Discours sur "Economie Politique") (Jeneva, 1756, go Lo] )
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