८३८ पूंजीवादी उत्पादन , का अपहरण करके इनका निर्माण किया गया है। परन्तु बनता की सहन बुद्धि ने वास्तविकता को समझने में गलती नहीं की। कान्ति-केसरी मिराबो के काल में भी बड़ी-बड़ी हस्तनिर्माणशालाएं "manufactures réunles"-या "कई वर्कशापों को जोड़कर बनायी गयी संयुक्त वर्कशा". कहलाती थी, ले लेतों के बारे में कहा जाता था कि कई त मिलाकर एक कर दिये गये हैं। मिरावो ने कहा है: "हम केवल उन विशाल हस्तनिर्माणशालाओं की पोर ही ध्यान देते हैं, जिनमें सैकड़ों भादमी एक संचालक की देखरेख में काम करते हैं और जिनको पाम तौर पर manufactures réunies (का वर्कशापों को जोड़कर बनायी गयी संयुक्त बर्कशा) कहा जाता है। उन हस्तनिर्माणशालाओं की भोर हम कोई ध्यान नहीं देते, जिनमें बहुत सारे मजदूर अलग- अलग और अपने ही लिये काम करते हैं। वे पहले डंग की हस्तनिर्माणशालामों से एकदम दूरणा पड़ती हैं। लेकिन उनको पृष्ठभूमि में गल देना एक बहुत बड़ी गलती है, क्योंकि असल में ये दूसरे ढंग की हस्तनिर्माणशालायें ही राष्ट्रीय समृद्धि का महत्वपूर्ण प्राधार होती है...बड़ी वर्कशाप (manufacture réunie) से एक या दो उचमकर्ता प्रसाधारण म से धनी बन जायेंगे, लेकिन मजदूर न्यूनाधिक मजबूरी पाने वाले मजबूर ही बने रहेंगे और व्यवसाय की सफलता में उनका कोई भाग नहीं होगा। छोटी और अलग से काम करने वाली वर्कशाप (manufacture séparée) में, इसके विपरीत, कोई धनी नहीं बन पायेगा, लेकिन बहुत से मजदूर पाराम से जीवन बिता सकेंगे। उनमें जो मितव्ययी और परिममी होंगे, वे थोड़ी सी पूंजी जमा कर लेंगे और सन्तानोत्पत्ति के समय के लिये, बीमारी के वक्त के लिये, अपने ऊपर खर्च करने के लिये या कोई चीन-बसत खरीदने के लिये कुछ बचा लेंगे। मितव्ययी और परिमनी मजदूरों की संख्या बढ़ती जायेगी, क्योंकि वे खुद अपने अनुभव से यह देखेंगे कि अच्छा माचरण पार क्रियाशीलता मूलतया उनकी अपनी स्थिति में सुधार करने का साधन है, न कि मजदूरी में थोड़ा इलाका कराने का, जिसका भविष्य के लिये कभी कोई महत्व नहीं हो सकता और जिसका एकमात्र परिणाम यही होता है कि भावनी बोड़ी बेहतर जिन्दगी बिताने लगता है, मगर फिर भी उसे रोज कुमओ सोबकर पानी पीना पड़ता है... बड़ी वर्कशाप कुछ व्यक्तियों का निजी व्यवसाय होती है, जो मजदूरों को रोजाना मजबूरी देकर उनसे अपने हित में काम कराते हैं। इस प्रकार की वर्कशापों से इन व्यक्तियों को सुन मिल सकता है, लेकिन वे कभी इस लायक नहीं बन सकती कि सरकारें उनकी पोर ध्यान दें। स्वतंत्र वर्कशाप केवल अलग-अलग काम करने वाले मजदूरों की उन छोटी वर्कशापों को ही समझा जा सकता है, जिनके साथ प्रायः छोटी-छोटी जोतों की खेती भी गुड़ी रहती है। भवतिहर माबादी के एक भाग की सम्पत्ति छीन ली गयी और उसे जमीन से बेदखल कर दिया गया, तो उससे न केवल मजदूर, उनके जीवन-निर्वाह के साधन तथा भम की सामग्री प्रायोगिक पूंजी के वास्ते काम करने को स्वतंत्र हो गयीं, बल्कि परेलू मन्त्री भी तैयार हो गयी। सच तो यह है कि जिन घटनाओं ने छोटे किसानों को मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों में और उनके जीवन-निर्वाह तवा भन करने के साधनों को पूंजी के भौतिक तत्वों में बदल गला "1 . 1 Mirabeau, उप० पु०, ग्रंथ ३, पृ० २०-१०६, विभिन्न स्थानों पर। मिराबो यदि अलग-अलग काम करने वाले मजदूरों की वर्कशापों को "संयुक्त" वर्कशापों की अपेक्षा प्रार्षिक दृष्टि से अधिक लाभदायक और उत्पादक समझते थे और “संयुक्त" वर्कशापों को सरकार द्वारा बनावटी ढंग से पैदा किया गया एक परदेशी पौधा मानते थे, तो उसका कारण यह है कि उस काल के योरपीय महाद्वीप के अधिकतर कारखानों की हालत कुछ इसी तरह की थी।
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८४१
दिखावट