पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८४८

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प्रौद्योगिक पूंजीपति की उत्पत्ति ८४५ . की घोषणा की थी। १७२० में फ्री बोपड़ी की त्वचा १०० पौण पुरस्कार का ऐलान किया गया था। १७४ में, जब मस्साघुसेट्स चे ने एक खास कबीले को विद्रोही घोषित किया, निम्नलिखित पुरस्कारों की घोषणा की गयी : १२ बर्ष या उससे अधिक मायु के पुरुषों को मार गलने के लिये प्रति लोपड़ी की त्वचा १०० पौण (नवी मुद्रा में), पुरुषों को पार लाने के लिये प्रति व्यक्ति १०५ पौड, स्त्रियों और बच्चों को पकड़ लाने के लिये प्रति व्यक्ति ५५ पाण्ड, स्त्रियों और बच्चों को मार गलने के लिये प्रति सोपड़ी की त्वचा ५० पौड। कुछ दशक पौर बीत जाने के बाद प्रोपनिवेशिक व्यवस्था ने न्यू इंगलैग के उपनिवेशों की नींव गलने वाले इन pillgrim fathers (पवित्र-हत्य यात्रियों) के वंशजों से बदला लिया, वो इस बीच विद्रोही बन बैठे थे। अंग्रेजों के उकसाने पर और अंग्रेजों के पैसे के एवज में अमरीकी आदिवासी अपने गंडासों से इन लोगों के सिर काटने लगे। बिटिश संसद ने घोषणा की कि विद्रोही प्रमरीकियों के पीछे शिकारी कुत्ते छोड़कर और प्राविवासियों से उनके सिर कटवाकर वह केवल “भगवान और प्रकृति के दिये हुए साधनों" का ही उपयोग कर रही है। जिस तरह गरमलाने में पौषे जल्दी-जल्दी बढ़कर तैयार हो जाते हैं, उसी तरह औपनिवेशिक व्यवस्था की छत्र-छाया में व्यापार और नौ-परिवहन बहुत तेजी से विकास करने लगे। खूपर ने जिनको "Gesellschaften Monopolia" ("एकाधिकारी कम्पनियां") कहा था, उन्होंने पूंजी के संकण में शक्तिशाली साधनों का काम किया। उपनिवेशों में नवजात उद्योगों के लिये ममियां तैयार हो गयी, और मणियों पर एकाधिकार होने के कारण और भी तेजी से संचय होने लगा। योरप के बाहर मुली लूट-मार करके, लोगों को गुलाम बनाकर और हत्याएं करके जिन खजानों पर कब्जा किया जाता था, वे सब मातृभूमि में पहुंचा दिये जाते थे और वहाँ वे पूंजी में बदल जाते थे। औपनिवेशिक व्यवस्था का पूर्ण विकास सबसे पहले हालस ने किया था। बह १६४८ में ही वाणिज्य के क्षेत्र में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया था। "ईस्ट इन्डिया के साथ वो व्यापार होता था और दक्षिण-पूर्वी तथा उत्तर-पश्चिमी योरप के बीच जो व्यापार चलता था, उसपर हालय का "लगभग एकाधिकार था। कोई अन्य देश उसके मीन-क्षेत्रों, समुद्री जहाजों और उद्योगों का मुकाबला नहीं कर सकता था। म प्रजातंत्र की कुल पूंजी शायद बाकी सारे योरप की eigena gott a miti" (G. Gülich, "Geschichtliche Darstellung, etc." Jena, 1830, बस १, पृ० ३७१) गुलीह को यहां यह और लिखना चाहिये था कि १६४८ के पाते न पाते हालग के लोगों से जितना ज्यादा काम लिया जाता पा, सी गरीबी में रहते और उनपर सा पाशविक अत्याचार किया जाता था, बाकी सारा पोरप मिलकर भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता था। मावकल पांचोगिक भेष्ठता का पर्व वाणिज्य के क्षेत्र में भी मेष्ठता होता है। परन्तु जिसे सचमुच हस्तनिर्माण का युग कहा जा सकता था, उस युग में, इसके विपरीत, जिसकी वाणिज्य क्षेत्र में भेटता होती थी, उसी को पौधोगिक क्षेत्र में भी प्रधानता प्राप्त हो जाती थी। यही कारण है कि उस काल में गोपनिवेशिक व्यवस्था ने इतनी बड़ी भूमिका अदा की। यह व्यवस्था एक नवे पोर "विचित्र देवता" के समान पी, बो देवस्थान की देवी पर बोरस के पुराने देवताओं के बिल्कुल बराबर में पाकर बैठ गया था और जिसने फिर एक दिन एक बरसे उन सारे देवतामों को नीचे गिरा दिया था। इस व्यवस्था में अतिरिक्त मूल्य कमाना मानवता का एकमात्र नक्य और देय पोषित कर दिया था। सार्वजनिक प्रत्यप-प्रथवा राष्ट्रीय कल-की प्रणाली ने, बिसका बन्न मन्य युग में ही " .