८५० पूंजीवादी उत्पादन ... अपराधी काउन्टी में, जिससे मेरा सम्बंध है (अर्थात् संकावायर में), इस निवॉव, निस्सहाय बच्चों को, जिनको कारखानेदारों के संरक्षण में रख दिया गया था, अत्यन्त मर्म-भेवी कूरतानों का शिकार बनना पड़ता था। उनसे इतना अधिक काम कराया जाता था कि प्रत्यधिक परिश्रम के कारण वे मानो मृत्यु के कगार पर पहुंच जाते थे उनको कोड़ों से मारने, खंबीरों में अकड़कर रखने और यातनाएं देने के नये-नये तरीके निकालने में कूरता ने बड़ी सूझ-यूम का परिचय दिया था ... उनमें से बहुतों को काम के समय कोड़ों पीटा जाता था और भूखा रखा जाता था, जिससे उनकी हड़ियां निकल पाती थीं और यहां तक कि कुछ तो .. मात्महत्या तक कर लेते थे ... जनता की निगाह से छिपी हुई रवीशायर, नोटिंघमशायर और लंकाशायर की सुन्दर और मनोरम घाटियां वारण पोर निर्जन यातना- गृहों में और बहुतों के लिये तो वष-स्थलों में परिणत हो गयी थी। कारखानेदारों को बेशुमार मुनाले होते थे, लेकिन इससे उनकी भूल संतुष्ट होने के बजाय अधिकाधिक वीव होती जाती पी और इसलिये कारखानेदारों ने एक ऐसी तरकीब निकाली, जिससे उनको पाशा बी कि उनके मुनाफे बराबर बढ़ते ही जायेंगे और उनका बढ़ना कभी नहीं रुकेगा। उन्होंने उस प्रणाली का प्रयोग करना प्रारम्भ किया, बो "रात को काम करना" कहलाती थी। मतलब यह कि मजदूरों का एक बल दिन में लगातार काम करते रहने के कारण पककर पूर हो जाये, तब तक एक दूसरा बल रात भर काम करने को तैयार हो जाये बिन-पाली वाले मजदूर तब उन्हीं बिस्तरों पर जाकर लेट रहते हैं, जिनपर से रात-पाली वाले उठकर पाये हैं, और रात- पाली वाले उन विस्तरों में शरण पाते हैं, जिनको दिन-पाली वाले सुबह को खाली कर देते हैं। लंकाशापर की परम्परा है कि वहां बिस्तर कमी नहीं होते। 11 1 John Fielden, "The Curse of Factory System”, London, 1836, 9° 4,81 फैक्टरी-व्यवस्था की इसके पहले की कलंकपूर्ण विशेषताओं के बारे में देखिये Dr. Aikin की रचना "Description of the Country from thirty to forty miles round Manchester" (London, 1795, पृ० २१९) और Gisborne की रचना "Inquiry into the Duties of Men" ["मनुष्यों के कर्तव्यों की विवेचना'] (१७९५, खण्ड २)।-जब भाप के इंजन ने देहात में जल-प्रपातों के निकट स्थित फैक्टरियों को वहां से उखाड़कर शहरों के बीचों-बीच ला बड़ा किया, तो अतिरिक्त मूल्य बनाने वाले "परिवर्जनशील" पूंजीपति को बच्चों के रूप में पहले से तैयार मानव-सामग्री मिल गयी,- उसे गुलामों की तलाश में मुहताजबानों के दरवाजे नहीं खटखटाने पड़े। -जब (" plausibility [बगुलाभगती] के मंत्री" पील के बाप) सर पार• पील ने १८१५ में बच्चों के संरक्षण के लिये अपना विधेयक संसद में पेश किया, तो Bullion Committee (कलधौत-समिति) के प्रतिभाशाली सदस्य और रिकारों के अंतरंग मित्र , फ्रांसिस होनर ने हाउस माफ़ कामन्स में भाषण देते हुए कहा था: 'यह काफी प्रसिद्ध बात है कि एक दिवालिया व्यक्ति की सम्पत्ति के साथ-साथ इन बच्चों की (यदि इस शब्द का प्रयोग वांछनीय समझा जाये तो) एक टोली भी विक्री के लिये पेश की गयी थी और सम्पत्ति के एक भाग के रूप में उसका खुले-पाम विज्ञापन किया गया था। Court of King's Bench (राज-न्यायालय) के सामने दो वर्ष पहले एक अत्यन्त वारुण उदाहरण प्रस्तुत हुमा बा। लन्दन के एक क्षेत्र के अधिकारियों ने कुछ बच्चों को सीबतर मजदूरों के रूप में एक कारखानेदार के यहाँ नौकर रखवा दिया था। वहां से वे एक दूसरे कारखानेदार के यहां भज दिये गये। उसके
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८५३
दिखावट