पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८५७

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८५४ पूंजीवादी उत्पादन . पराधीनता की अन्य अवस्थामों में भी पायी जाती है। लेकिन वह फलती-फूलती है, अपनी समस्त शक्ति का प्रदर्शन करती है और पर्याप्त एवं प्रामाणिक प प्राप्त करती है केवल उसी जगह, वहाँ मजदूर अपने श्रम के साधनों का बुब मालिक होता है और उनसे जुन काम लेता है, यानी जहाँ किसान उस परती का मालिक होता है, जिसे वह जोतता है, और बस्तकार उस मोजार का स्वामी होता है, जिसका वह सिद्धहस्त ढंग से प्रयोग करता है। उत्पादन की इस प्रणाली के होने के लिये यह प्रावश्यक है कि अमीन छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटी हुई हो और उत्पादन के अन्य साधन बिखरे हुए हों। जिस प्रकार इस प्रणाली के रहते हुए उत्पादन के इन साधनों का संकेंद्रण नहीं हो सकता, उसी प्रकार यह भी असम्भव है कि उसके अन्तर्गत सहकारिता, उत्पादन की हर अलग-अलग क्रिया के भीतर भम-विभाजन , प्रकृति की शक्तियों के ऊपर समाज का नियंत्रण तथा उनका समाज के द्वारा उत्पादक ढंग से उपयोग और सामाजिक उत्पादक शक्तियों का स्वतंत्र विकास हो सके। यह प्रणाली तो केवल एक ऐसी उत्पादन-व्यवस्था और केवल एक ऐसे समाज से ही मेल खाती है, जो संकुचित तथा न्यूनाधिक रूप में पाविम सीमानों के भीतर ही गतिमान रहता है। जैसा कि पेपवेयर ने ठीक ही कहा है, इस प्रणाली को चिरस्थायी बना देना "हर बीच को सर्वत्र अल्पविकसित बने रहने का प्रावेश दे देना है"। अपने विकास की एक खास अवस्था में पहुंचने पर यह प्रणाली स्वयं अपने विघटन के भौतिक साधन पैदा कर देती है। बस उसी क्षण से समाज के गर्भ में नयी शक्तियां और नयी भावनाएं जन्म ले लेती है। परन्तु पुराना सामाजिक संगठन उनको श्रृंखलामों में जकड़े रहता है और विकसित नहीं होने देता। इस सामाजिक संगठन को नष्ट करना पावश्यक हो जाता है। वह नष्ट कर दिया जाता है। उसका विनाश, उत्पादन के बिसरे हुए व्यक्तिगत साधनों का सामाजिक दृष्टि से संकेंद्रित सापनों में रूपान्तरित हो जाना, अर्थात् बहुत से लोगों की भा सम्पत्ति का घोड़े से लोगों की प्रति विशाल सम्पत्ति में बदल जाना, अधिकतर जनता की भूमि, जीवन-निर्वाह के साधनों तथा श्रम के साधनों का अपहरण-साधारण बनता का यह भयानक तथा अत्यन्त कष्टदायक सम्पत्ति-अपहरण पूंजी के इतिहास की भूमिका मात्र होता है। उसमें नाना प्रकार के बल प्रयोग के तरीकों से काम लिया जाता है। हमने इनमें से केवल उन्हीं पर इस पुस्तक में विचार किया है, जो पूंजी के प्राविम संचय के तरीकों केस में युगान्तरकारी हैं। प्रत्यक्ष रूप में अपने हित में उत्पादन करने वालों का सम्पत्ति- अपहरण निर्मम ध्वंस-लिप्सा से और प्रत्यन्त जघन्य, अत्यन्त कुत्सित , मुद्रतम, नीचतम तमा अत्यन्त गर्हित भावनाओं से अनुप्रेरित होकर किया जाता है। अपने पाप कमायी हुई सम्पत्ति का स्थान, मो मानो पृषक रूप से मम करने वाले स्वतंत्र व्यक्ति के मन के लिये प्रावश्यक तत्वों के साथ मिलकर एक हो जाने पर भाषारित है, पूंजीवादी निजी सम्पत्ति ले लेती है, जो कि दूसरे लोगों के नाम मात्र के लिये स्वतंत्र भम पर-पर्वात् मजदूरी पर-पाषारित . होती है। ... 1 "Nous sommes dans une condition tout-à-fait nouvelle de la société nous tendons à séparer toute espèce de propriété d'avec toute espèce de travail" ["हम इस समय पूर्णतया नयी सामाजिक परिस्थितियों में रह रहे हैं ... हमारी प्रवृत्ति यह है कि हम हर प्रकार की सम्पत्ति का हर तरह के श्रम से सम्बंध-विच्छेद कर देना चाहते है"]। (Sismondi, “Nouveaux Principes d'Econ. Polit.", que ?, go Yax 1)