पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८६२

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उपनिवेशीकरण का प्राधुनिक सिद्धान्त ८५६ . . मजदूर का शोषण पोल की कीमत के जीवन-निर्वाह और उत्पादन के साधन ले गये थे और साथ ही उन्होंने अपने साप मजदूर-वर्ग के ३,००० व्यक्ति-स्त्री, पुरुष और बच्चे भी अपने साथ ले जाने की दूरदर्शिता दिलायी थी, मगर गन्तव्य स्थान पर पहुंचते ही यह हालत हो गयी कि "मि० पील के पास एक भी नौकर नहीं रह गया, जो उनका बिस्तर बिछा दे या नवी से पानी ले पाये।"1 बेचारे मि० पील! वह सब कुछ लेकर स्वान नदी पहुंचे थे, मगर केवल इंगलैग की उत्पादन- प्रणाली साथ लाना भूल गये थे। वेकशील के नीचे दिये गये माविष्कारों को समझने के लिये दो बातें पहले से ही कह देना पावश्यक है। हम यह जानते हैं कि उत्पादन और बीवन-निर्वाह के साधन जब तक प्रत्यक्ष रूप से अपने हित में उत्पादन करने वाले व्यक्ति की सम्पत्ति रहते हैं, तब तक वे पूंजी नहीं होते। ये साधन केवल उन्हीं परिस्थितियों में पूंजी बनते हैं, जिनमें वे साथ करने और उसको पराधीन बनाने के साधनों के रूप में भी काम में पाते हैं। लेकिन प्रर्वशास्त्री के मस्तिष्क में उनकी यह पूंजीवादी प्रात्मा उनकी भौतिक येह से इतने अंतरंग रूप से जुड़ी रहती है कि प्रशास्त्री उनको सभी परिस्थितियों में, यहां तक कि उन परिस्थितियों में भी, जब कि वे पूंजी की सर्वषा विरोधी अवस्था में होते हैं, पूंजी ही कहता है। बेकफील भी यही गलती करते हैं। इसके अलावा, यदि उत्पादन के साधनों के टुकड़े-टुकड़े करके उनको स्वयं अपने हित करने वाले बहुत से स्वतंत्र मजदूरों के बीच उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में बांट दिया जाये, तो उसे यह पूंजी का समान बंटवारा कहते हैं। इस प्रकार प्रशास्त्री वही काम करता है, जो सामन्ती विधिवेत्ता ने किया था। सामन्ती विधिवेत्ता में सामन्ती विधि से प्राप्त नामों की पर्चियां विशुद्ध मुद्रागत सम्बंधों पर चिपका दी थीं। बेकशील ने लिखा है : "यदि यह मानकर चला जाये कि समाज के सभी सदस्यों के पास पूंजी का समान भाग है,.. तो कोई व्यक्ति जितनी पूंजी का जुर प्रपन हापों से उपयोग कर सकता है, उससे अधिक पूंजी जमा करने की उसे इच्छा न होगी। अमरीका की नयी बस्तियों में कुछ हद तक इसी तरह की हालत है। वहां भूमि पर अधिकार करने की प्रबल इच्छा मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों के वर्ग को अस्तित्व में नहीं माने देती। m इसलिये जब तक मजदूर खुद अपने लिये संचय कर सकता है, और यह वह उस वक्त तक करता रहेगा, जब तक कि वह अपने उत्पादन के साधनों का बुब मालिक रहता है, -तब तक पूंजीवादी संचय का होना और पूंजीवावी उत्पादन प्रणाली का अस्तित्व में पाना असम्भव रहता है। कारण कि इन दो चीजों के लिये मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों के जिस वर्ग की मावश्यकता होती है, उसका उस समय तक प्रभाव रहता है। तब फिर पुराने योरप में मजदूर से वे तमाम साधन कैसे छीने गये, बो उसके श्रम के लिये पावश्यक ? अर्थात् वहाँ पूंजी और मजदूरी का सह-अस्तित्व कैसे कायम किया गया? एक बिल्कुल मौलिक ढंग के सामाविक करार के द्वारा। "पूंजी संचय को प्रोत्साहन देने के लिये मनुष्य-जाति ने... एक सरल उपाय का उपयोग किया है। बाहिर है, असल में तो ऐम स्मिव के समय से ही यह पूंची का संचय मनुष्य-जाति के अस्तित्व के एकमात्र एवं अन्तिम लक्ष्य के रूप में उसके कल्पना-लोक में मनरा रहा था। वह 1 E. G. Wakefield, "England and America" (fo otto antes, tieto और अमरीका'), London, 1833, बण्ड २, पृ. ३३ । 'उप० पु., बण १, पृ० १७॥