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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८६३

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८६० पूंजीवादी उत्पादन उपाय यह है कि "मनुष्ष-वाति ने अपने को पूंजी के मालिकों और मन के मालिकों में विभाजित कर दिया है...यह विभाजन सहकारिता और संयोजन का फल मा। संक्षेप में, "पूंजी के संचय" के सम्मान में मनुष्य-जाति के अधिकतर भाग जब अपनी सम्पत्ति का अपहरण कर लिया। प्रस्तु कोई भी यह सोचेगा कि पात्मत्याग की यह उन्मत्त भावना विशेष कर उपनिवेशों में सबसे अधिक खुलकर सामने भायेगी, क्योंकि केवल उपनिवेशों मेंही वे मनुष्य तवाये परिस्थितियां पायी जाती है, जो सामाजिक करार को स्वप्न से वास्तविकता में परिणत कर सकती थी। लेकिन तब स्वयंस्फूर्त, अनियमित उपनिवेशीकरण पर भरोसा करने के बजाय उसके प्रतिपक्षी "सुनियोजित उपनिवेशीकरण" का सहारा क्यों लिया जाये ? किन्तु...किन्तु ... "अमरीकी संघ के उत्तरी राज्यों में पावादी का बसा हिस्सा भी मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों की मन में पायेगा, इसमें सन्देह है... इंगलैण में... पावादी का अधिकांश प्रमजीवी वर्ग का है। लेकिन पूंजी की विजय के लिये खुद अपनी सम्पत्ति का अपहरण करवा देने की भावना ममबीवी मनुष्यों में इतनी कम है कि प्रोपनिवेशिक समृद्धि का एकमात्र प्रापार-जुब बेकफील के मतानुसार भी- वास-प्रथा ही हो सकती है। ककील के लिये सुनियोजित उपनिवेशीकरण केवल एक pis aller (काम-पलाऊ उपाय) है, पयोंकि दुर्भाग्य से उनका वास्ता बासों के बजाय स्वतंत्र मनुष्यों से पड़ा है। "स्पेन के वो लोग सेंट गेमिंगो में पहले-पहल जाकर बसे थे, वे स्पेन से अपने साप मजदूरों को नहीं ले गये थे। लेकिन मजदूरों के प्रभाव में या तो उनकी सारी पूंजी नष्ट हो जाती, या कम से कम घटते-घटते शीघ्र ही इतनी अल्प मात्रा में रह जाती, जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपने हाथों से उपयोग कर पाता था। अंग्रेजों ने सबसे प्राजिर में जिस उपनिवेश- पानी स्वान नदी की बस्ती-की नींव गली पी, वहां सचमुच यही बात देखने में पायी है। वहां पूंजी-बीज, पोखारों और पशुओं की एक बड़ी भारी राशि उसका उपयोग करने बाले मनदूरों के प्रभाव के कारण नष्ट हो गयी है, और अब वहां बसे हुए किसी भी व्यक्ति के पास जितनी पूंजी का वह अपने हाथों से उपयोग कर सकता है, उससे अधिक पूंजी हम यह बेसबुके हैं कि अधिकतर जनता की भूमि का अपहरण कर लेना ही उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली का प्राधार है। इसके विपरीत, किसी भी स्वतंत्र उपनिवेश का सार- तत्व इस बात में निहित होता है कि यहां की अधिकतर भूमि उस समय भी सार्वजनिक सम्पत्ति होती है और इसलिये इस भूमि पर बसा हुमा प्रत्येक व्यक्ति उसके एक भाग को अपनी निजी सम्पत्ति और उत्पादन के व्यक्तिगत साधनों में बदल सकता है और फिर भी इसके बाद पाकर बसने वालों के रास्ते में कोई बाधा नहीं पड़ती,-के भी इसी क्रिया को दुहरा सकते हैं।' उपनिवेशों की समृद्धि का और उनके सबसे बड़े दुर्गुग का,-पानी उपनिवेशों में पूंची की स्थापना . उप० पु०, बण्ड १, पृ० १८। 'उप. पु., पृ० ४२, ४३, ४। "उप. पु., खण्ड २, पृ० ५। "यदि भूमि को उपनिवेशीकरण का एक तत्व बनना है, तो उसके लिये केवल इतना ही पावश्यक नहीं है कि भूमि परती पड़ी हो, बल्कि उसके लिये यह भी प्रावश्यक है कि वह सार्वजनिक सम्पत्ति हो और उसे निजी सम्पत्ति में बदला जा सकता हो।" (उप० पु०, बण्ड २. पृ० १२५) 1