८६४ पूंजीवादी उत्पादन तो उपनिवेशों में जो यह शोचनीय स्थिति पैदा हो गयी है, बेकशील्ड के मतानुसार, उसका क्या परिणाम हमा है? उसका परिणाम हुमा है उत्पादकों और राष्ट्रीय धन के "वितर जाने की एक बर्बर प्रवृत्ति"।' पब उत्पादन के साधन जुद अपने हित में काम करने वाले प्रसंस्स उत्पादकों के बीच बंट जाते है, तो पूंजी का केनीयकरण समाप्त हो जाने के साथ-साथ संयुक्त मम का समस्त मापार नष्ट हो जाता है। अब ऐसा कोई बंधा नहीं किया जा सकता, जिसके पूरे होने में कई वर्ष लग जाने की पाशंका हो और जिसमें प्रचल पूंजी की बड़ी राशि लगाना पावश्यक हो। योरप में पूंजीपतियों को पूंची लगाने में एक क्षण के लिये भी हिचकिचाहट नहीं होती, क्योंकि यहां मजदूर-वर्ग पूंची का एक सबीच उपांग मात्र है और उसकी संख्या हमेशा पूंजी की पावश्यकता से अधिक रहती है, और यह सबा उसका हुक्म बनाने को तैयार रहता है। लेकिन उपनिवेशों में क्या हालत है।.. बेकशील वहाँ के बारे में हमें एक बहुत ही दुलर कपा सुनाते हैं। वह कनाग तवा न्यू पार्क राज्य के कुछ पूंजीपतियों से बात कर रहे थे, वहाँ कि मावासियों का प्रवाह अक्सर एक ही जाता है और कुछ "अनावश्यक" मजदूरों की तलछट छोड़ जाता है। भावनाओं पर तीन भाषात करने वाली इस कवा का एक पात्र कहता है: "हमारी पूंजी ऐसे कई कामों के शुरू करने के लिये तैयार बैठी थी, जिनको पूरा करने के लिये काफी लम्बे समय की पावश्यकता थी। लेकिन हम इस तरह के कामों में ऐसे मजदूरों को साथ लेकर हाप नहीं लगा सकते थे, दो, हम जानते थे, जल्दी ही हमें छोड़कर चले जायेंगे। यदि हमें इसका विश्वास होता कि ये पावासी हमारे यहां ही काम करते रहेंगे, तो हम उनको तुरन्त नौकर रख लेते और काफी चे नाम कर रख लेते। और यह जानते हुए भी किये हमें छोड़कर चले जायेंगे, हम उनको नौकर रख लेते, अगर हमें केवल इतना यकीन होता कि जब कभी बरत होगी, तब हमें नये मखदूर मिल जायेंगे।" इंगलैड की पूंजीवादी खेती तथा उसके "संयुक्त" श्रम का प्रमरीकी किसानों की विसरी हुई लेती के साथ मुकाबला करने के बाद बेकशील मनबाने में हमें तसवीर का दूसरा पहलू भी बिना देते हैं। वह बताते हैं कि अमरीका की साधारण बनता सुती और स्वतंत्र जीवन व्यतीत करती है और बड़ी उद्यमशील तवा अपेक्षाकृत सुसंस्कत है, जब कि "इंगलैड का लेतिहर मजदूर दुलिया, प्रभागा (a miserable wretch) और कंगाल होता है... और उत्तरी अमरीका तवा कुछ नये उपनिवेशों को छोड़कर और किस देश में खेती का काम करने के लिये नौकर रखे गये स्वतंत्र मजदूरों की मजबूरी केवल पीवन-निर्वाह के लिये पावश्यक मजदूरी से बहुत अधिक होती है?..इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि इंगम में खेती में इस्तेमाल होने वाले घोड़ों को, मूल्यवान सम्पत्ति होने के नाते, अंग्रेज किसानों की अपेक्षा कहीं अधिक मच्न भोजन खाने को मिलता है। लेकिन never mind (कोई बात नहीं)। यहां पर फिर राष्ट्रीय समृद्धि अपने स्वल्प के ही कारण बनता की गरीबी के साथ एकाकार हो . गयी है। . "simple" ("भोले") है कि पूंजीपतियों का "शोषण" करने लगते हैं, पुलिस के परिये काम ठीक-ठाक कराया जाये। 1Wakefield, उप० पु., बण्ड २, पृ. ५२ । 'उप. पु., पृ० १९१, १९२। 'उप. पु., पण १.पू. ४७, २४६ ।
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