उपनिवेशीकरण का माधुनिक सिद्धान्त ८६५ तो फिर उपनिवेशों के इस पूंजीपति-विरोधी नासूर का कैसे इलाज किया जाये? यदि लोग एक ही झटके में सारी परती को सार्वजनिक सम्पत्ति से निजी सम्पत्ति में बदल देने को तैयार हो जायें, तो निश्चय ही इस बीमारी की जड़ कट जायेगी, लेकिन साथ ही उपनिवेश भी नष्ट हो जायेंगे। असल में, कोई ऐसी तरकीब निकालनी है, जिससे एक पन्य दो काज वाली बात हो जाये। सरकार को चाहिये कि पूर्ति और मांग के नियम की अवहेलना करके अछूती धरती के लिये एक बनावटी बाम नियत कर दे। यह बाम इतना ऊंचा होना चाहिये कि मावासी मजदूर को बमीन खरीदने लायक धन कमाने और इस प्रकार स्वतंत्र किसान बनने के पहले एक लम्बे समय तक.मजदूरी पर काम करना पड़े।इतने ऊंचे दामों पर बमीन बेचकर कि उनके कारण मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों के लिये जमीन खरीदना लगभग असम्भव हो जाये, और पूर्ति तथा मांग के पवित्र नियम का उल्लंघन करके मजदूरों की मजबूरी में से जो धन पुराया जायेगा, उसके ममा होने से सरकार के पास एक कोष संचित हो जायेगा। उसका सरकार यह उपयोग करेगी कि ज्यों-ज्यों यह कोष बढ़ता जायेगा,त्यों-स्यों वह योरप से कंगाल लोगों को उपनिवेशों में मंगाती जायेगी, ताकि इस तरह मजदूरों की मण्डी पूंजीपतियों के हित में हमेशा माल से पटी रहे। get ata qe "tout sera pour le mieux dans le meilleur des mondes possibles" ("सब दुनियानों से अच्छी इस दुनिया में हर चीच भलाई के लिये ही होगी")। यही है "सुनियोजित उपनिवेशीकरण" का महान रहस्य। वेकशील ने विजयोल्लास के साथ कहा है कि इस योजना का प्रयोग करने पर "भम की पूर्ति अनिवार्य रूप से स्थिर और नियमित हो जायेगी, क्योंकि एक तो कोई भी मजदूर चूंकि बहुत समय तक मजदूरी पर काम किये बिना जमीन नहीं प्राप्त कर सकेगा, इसलिये सभी प्रावासी मजदूरों को काफी समय तक मजदूरी पर संयुक्त मन करना होगा और इस तरह वे और अधिक मजदूरों को नौकर रखने के लिये पूंजी तैयार कर 1 "C'est, ajoutez-vous, grâce à l'appropriation du sol et capitaux que l'homme, qui n'a que ses bras, trouve de l'occupation, et se fait un revenu... c'est au contraire, grâce à l'appropriation individuelle du sol qu'il se trouve des hommes n'ayant que leurs bras... Quand vous mettez un homme dans le vide, vous vous emparez de l'atmosphère. Ainsi faites-vous, quand vous vous emparez du sol... C'est le mettre dans le vide de richesses, pour ne le laisser vivre qu'a votre volonté" ["तो पापका कहना यह है कि जमीन और पूंजी पर कुछ व्यक्तियों का निजी स्वामित्व होने का ही यह फल है कि जिस मनुष्य के पास अपने हाथों के सिवा और कुछ नहीं है, उसे भी काम मिल सकता है और वह अपनी जीविका कमा सकता है ... मैं आपसे कहता हूं कि बात इसकी उल्टी है। भूमि पर कुछ व्यक्तियों का निजी स्वामित्व होने का ही यह नतीजा है कि कुछ ऐसे लोग हैं, जिनके पास उनके हाथों के सिवा और कुछ नहीं है ... जब आप किसी प्रादमी को शून्य में बन्द कर देते हैं, तब माप उसके लिये हवा पाना असम्भव बना देते हैं। जब पाप जमीन पर कब्जा कर लेते हैं, तब भी आप यही करते हैं ... पाप मनुष्य को एक ऐसे शून्य में बन्द कर देते हैं, जिसमें जरा सा भी धन छोड़ा गया है, और यह आप इसलिये करते हैं कि वह भादमी सदा पापकी इच्छा का दास TAT"]1 (Colins, “L'Economie Politique, Source des Révolutions et des Uto ples pretendues socialistes", Paris, 1857, खण्ड ३, पृ० २६८-२७१, विभिन्न स्थानों पर।) 55-45 .
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