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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/९३

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पूंजीवादी उत्पादन होना एक ऐसा रहस्य है, जो मालों के सापेन मूल्यों के व्यक्त उतार-चढ़ाव के नीचे छिपा रहता है। उसका पता लग जाने से यह सवाल तो दूर हो जाता है कि श्रम से उत्पन्न होने वाली वस्तुओं के मूल्यों के परिमाण केवल पाकस्मिक ढंग से निर्धारित होते हैं, किन्तु उससे उनके निर्धारित होने के ढंग में कोई तबदीली नहीं पाती। सामाजिक जीवन के रूपों के विषय में मनुष्य के विचार और उनके फलस्वरूप उसके द्वारा इन रूपों का वैज्ञानिक विश्लेषण भी इन स्मों के वास्तविक ऐतिहासिक विकास की ठीक उल्टी विशा ग्रहण करते हैं। मनुष्य उनपर उस समय विचार करना प्रारम्भ करता है, जब विकास की क्रिया के परिणाम पहले से उसके सामने मौजूद होते हैं। जिन गुणों के फलस्वरूप श्रम से उत्पन्न वस्तुएं माल बन जाती हैं और जिनका उन वस्तुओं में होना मालों के परिचलन की मावश्यक शर्त होती है, वे पहले से ही सामाजिक जीवन के स्वाभाविक, एवं स्वतःस्पष्ट रूपों का स्थायित्व प्राप्त कर लेते हैं, और उसके बाद कहीं मनुष्य इन गुणों के ऐतिहासिक स्वरूप को नहीं, क्योंकि उसकी दृष्टि में वे तो अपरिवर्तनीय होते हैं, बल्कि उनके पर्व को समझने की कोशिश शुरू करता है। चुनांचे, मूल्यों का परिमाण केवल उस वक्त निर्धारित हुआ, जब पहले मालों के दामों का विश्लेषण हो गया, और सभी मालों को मूल्यों के रूप में केवल उस बात मान्यता मिली, जब पहले सभी मालों को समान रूप से मुद्रा के रूप में अभिव्यंजना होने लगी। किन्तु मालों की दुनिया का यह अन्तिम मुद्रा-रूप ही है, जो निजी श्रम के सामाजिक स्वरूप को और अलग-अलग उत्पादकों के बीच पाये जाने वाले सामाजिक सम्बंधों को प्रकट करने के बजाय वास्तव में उनपर पर्दा गल देता है। जब मैं यह कहता हूं कि कोट या जूतों का कपड़े से इसलिये एक खास प्रकार का सम्बंध है कि कपड़ा प्रमूर्त मानव-श्रम का सार्वत्रिक अवतार है, तो मेरे कपन का बेतुकापन खुद-ब-खुद जाहिर हो जाता है। फिर भी, जब कोट और जूतों के उत्पादक इन वस्तुओं का मुकाबला सार्वत्रिक सम-मूल्य के रूप में कपड़े से या- जो कि एक ही बात है-सोने या चांदी से करते हैं। तो वे खुद अपने निजी श्रम और समाज के सामूहिक श्रम के सम्बंध को उसी बेतुके रूप में व्यक्त करते हैं। पूंजीवादी अर्थशास्त्र की परिकल्पनाएं ऐसे ही रूपों की होती हैं। ये चिन्तन के ऐसे रूप होते हैं, जो उत्पादन की एक खास, इतिहास द्वारा निर्धारित प्रणाली को- अर्थात् मालों के उत्पादन की- परिस्थितियों और सम्बंधों को सामाजिक मान्यता के साथ व्यक्त करते हैं। इसलिये , मालों का यह पूरा रहस्य, यह सारा जादू और इन्द्रजाल, जो भम से उत्पन्न वस्तुओं को उस वक्त तक बराबर धेरे रहता है, जब तक कि वे मालों के रूप में रहती है, - यह सब, जैसे ही हम उत्पादन की दूसरी प्रणालियों पर विचार करना प्रारम्भ करते हैं, वैसे ही फौरन गायब हो जाता है। रोबिन्सन कूसो के अनुभव चूंकि प्रशास्त्रियों का एक प्रिय विषय है, इसलिये पाइये, - . यहां तक कि रोबिन्सन-मार्का कहानियां रिकार्डों के पास भी है। ".मादिम शिकारी और पादिम मछलीमार से वह मालों के मालिकों के रूप में फ़ौरन मछली और शिकार का विनिमय करा देते हैं। विनिमय उस श्रम-काल के अनुपात में होता है, जो इन विनिमय-मूल्यों में लगा होता है। पर इस अवसर पर उनके उदाहरण में यह काल-दोष पैदा हो जाता है कि वह इन लोगों से, जहां तक कि उन्हें अपने प्रौजारों का हिसाब लगाना होता है, उस वार्षिकी-सारिणी को इस्तेमाल कराने लगते हैं, जो १८१७ में लन्दन-एक्सचेंज में इस्तेमाल हो रही थी। मालूम .