माल . . . उसके द्वीप में चलकर एक नजर उसपर भी गलें। उसको पावश्यकताएं बेशक बहुत कम और बहुत साधारण उंग की है, मगर फिर भी उसे कुछ प्रावश्यकताओं को तो पूरा करना ही पड़ता है, और इसलिये उसे विभिन्न प्रकार के घोड़े से उपयोगी काम भी करने पड़ते हैं, जैसे पौसार और फर्नीचर बनाना, बकरियां पालना, मछली मारना और शिकार करना। वह जो भगवान की प्रार्थना या इसी तरह के दूसरे और काम करता है, उनका हमारे हिसाब में कोई स्थान नहीं है, क्योंकि इन कामों से उसे मानन्द प्राप्त होता है और उनको वह अपना मनोरंजन समझता है। इस बात के बावजूद कि उसे तरह-तरह का काम करना पड़ता है, वह जानता है कि उसके श्रम का रूप कुछ भी हो, वह है उसी एक रोबिन्सन का काम, और इसलिये वह मानव-श्रम के विभिन्न रूपों के सिवा और कुछ नहीं है। मावश्यकता खुद उसे इसके लिये मजबूर कर देती है कि वह अलग-अलग ढंग के कामों में अपना समय ठीक-ठीक बांटे। अपने कुल काम में वह किस तरह के काम को अधिक समय देता है और किसको कम, यह इस बात पर निर्भर करता है कि जिस उपयोगी उद्देश्य को वह उस काम द्वारा प्राप्त करना चाहता है, उसकी प्राप्ति में उसे कितनी कम या ज्यादा कठिनाइयों पर काबू पाना होगा। यह हमारा मित्र रोबिन्सन अनुभव से जल्दी ही यह सीख जाता है, और जहाज के भग्नावशेष से एक घड़ी, एक खाताबही और कलम तथा रोशनाई निकाल लाने के बाद एक सच्चे अंग्रेज की तरह वह हिसाब-किताब रखना शुरू कर देता है। उसके पास जितनी उपयोगी वस्तुएं हैं, उनकी सूची वह अपनी जमा माल की बही में बर्न कर देता है और यह भी लिख लेता है कि उनके उत्पादन के लिये उसे किस तरह का काम करना पड़ा और इन वस्तुओं को निश्चित मात्रामों के उत्पादन में मौसतन कितना श्रम-काल खर्च हुमा। रोबिन्सन और उन तमाम वस्तुओं के बीच, जिनसे उसकी यह जुब पंदा की हुई बौलत तैयार हुई है, जितने भी सम्बंध हैं, वे सब इतने सरल और स्पष्ट है कि मि सेडली टेलर तक उनको बिना कोई खास मेहनत किये समझ सकते हैं। और फिर भी मूल्य के निर्धारण के लिये जितनी चीजों की पावश्यकता है, वे सब इन सम्बंधों में मौजूद हैं। पाइये , अब हम रोबिन्सन के, सूर्य के प्रकाश से चमचमाते द्वीप को छोड़कर अंधकार के प्रावरण में के मध्ययुगी योरप को चलें। यहां स्वाधीन मनुष्य के स्थान पर हर पादमी पराधीन है। यह कृषि-वासों और सामन्तों, अषिपतियों और प्रवीन सरदारों, जनसाधारण और पादरियों की दुनिया है। यहां व्यक्तिगत पराधीनता उत्पादन के सामाजिक सम्बंधों की उसी हद तक मुख्य विशेषता है, जिस हद तक कि वह इस उत्पादन के भाषार पर संगठित जीवन के अन्य क्षेत्रों को मुख्य विशेषता है। लेकिन यहाँ चूंकि व्यक्तिगत पराधीनता समाज की बुनियाद है, ठीक इसीलिये श्रम तथा उससे उत्पन्न होने वाली वस्तुओं को अपनी वास्तविकता से भिन्न कोई अजीबोगरीब रूप धारण करने की पावश्यकता नहीं होती। वे समाज के लेन- देन में सेवाओं और वस्तुओं के रूप में भुगतान का म धारण कर लेती है। यहां श्रम का तात्कालिक सामाविक रूप उसका सामान्य प्रमूर्त रूप नहीं है, जैसा कि मालों के उत्पादन पर प्राधारित समान में होता है, बल्कि मन का विशिष्ट और स्वाभाविक रूप ही यहां उसका होता है कि पूंजीवादी रूप के सिवा रिकार्गे समाज के केवल एक ही और रूप से परिचित थे, और वह था 'मि० प्रोवेन के समान्तर चतुर्भुजों का रूप'।" (Karl Marx, "Zur Kritik der Politischen Oekonomie", TO 15, ३६)
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