पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/९५

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१२ पूंजीवादी उत्पादन , तात्कालिक सामाजिक रूप है। जिस तरह बाल पैदा करने वाले मम को समय द्वारा मापा जाता है, उसी तरह बेगार के मम को भी मापा जा सकता है। लेकिन प्रत्येक कृषि-पास जानता है कि अपने सामन्त की सेवा में यह जो कुछ वर्ष कर रहा है, वह उसकी अपनी व्यक्तिगत मम-शक्ति की एक निश्चित मात्रा है। प्राय का बो बसबा हिस्सा पावरी को दे देना पड़ता है, वह उसके पाशीर्वाद से त्यावा ठोस वास्तविकता होती है। इसलिये, इस समाज में अलग- अलग वर्गों के लोगों की भूमिकामों के बारे में हमारा बो भी विचार हो, मम करने वाले व्यक्तियों के सामाजिक सम्बंध हर हालत में उनके प्रापसी व्यक्तिगत सम्बंधों के रूप में ही प्रकट होते हैं और उनपर कभी ऐसा पर्वा नहीं पड़ता कि वे श्रम से पैदा होने वाली वस्तुओं के सामाजिक सम्बंध प्रतीत होने लगें। सामूहिक प्रम- अपवा प्रत्यक्ष रूप से सम्बड भमके किसी उदाहरण का अध्ययन करने के लिये हमें उस स्वयंस्फूर्त ढंग से विकसित रूप की पोर लौटने की आवश्यकता नहीं है, जिससे सभी सम्म जातियों के इतिहास के प्रवेशमार पर हमारी भेंट होती है। एक उदाहरण हमारे बिल्कुल नवदीक है। वह उस किसान परिवार के पुराणपन्थी उद्योगों का उदाहरण है, अपने घरेलू इस्तेमाल के लिये मनान, डोर, सूत, कपड़ा और पोशाक तैयार करता है। जहां तक परिवार का सम्बंध है, ये अलग-अलग वस्तुएं उसके मम की पैदावार होती हैं, मगर जहाँ तक इन वस्तुओं के मापसी सम्बंधों का सवाल है, वे माल नहीं होती। मम के वे विभिन्न प, जिनसे ये तरह-तरह की वस्तुएं तैयार होती है, जैसे खेत जोतना, ढोर पालना, कातना, सुनना और कपड़े सीना, ये सब स्वयं अपने में और अपने वास्तविक रूप में प्रत्यक्ष ढंग से सामाजिक कार्य हैं। कारण कि ऐसे परिवार के कार्य है, जिसमें मालों के उत्पादन पर भाषारित समाज की तरह प्रम-विभाजन की एक स्वयंस्फूर्त ढंग से विकसित प्रणाली पायी जाती है। परिवार के भीतर काम का बंटवारा और उसके अनेक सदस्यों के श्रम-काल का नियमन विस तरह अलग-अलग मौसम के साथ बदलने वाली प्राकृतिक परिस्थितियों पर निर्भर करते है, उसी तरह भापु-भेद और लिंग-भेव पर भी निर्भर करते हैं। इस सूरत में प्रत्येक व्यक्ति की भम-शक्ति स्वभावतः परिवार की कुल मन-शक्ति के एक निश्चित अंश के रूप में ही व्यवहार में पाती है, और इसलिये ऐसी हालत में यदि व्यक्तिगत भम-शक्ति के व्यय को उसकी अवधि द्वारा मापा जाता है, तो उसका कारण प्रत्येक व्यक्ति के मम का सामाजिक स्वस्म ही है। . . 1 " . ट्यूटन और हाल के कुछ दिनों से यह हास्यास्पद धारणा फैल गयी है कि अपने मादिम रूप में सामूहिक सम्पत्ति खास तौर पर एक स्लाव रूप है, या यहां तक कहा जाता है कि वह विशुद्ध रूसी रूप है। हम साबित कर सकते हैं कि यह वही माविम रूप है, जो रोमन , कैल्ट लोगों में था और जिसके अनेक उदाहरण ध्वंसावशेषों की शकल में ही सही, पर पाज भी हिन्दुस्तान में मिलते हैं। सामूहिक सम्पत्ति के एशियाई और विशेषकर हिन्दुस्तानी रूपों का अधिक पूर्ण ढंग से अध्ययन यह स्पष्ट कर देगा कि पादिम सामूहिक सम्पत्ति के विभिन्न रूपों से किस प्रकार उसके भंग होने के अलग-अलग ढंग निकले है। मिसाल के लिये, यह साबित किया जा सकता है कि रोमन और ट्यूटन लोगों में पाये जाने वाले निजी सम्पत्ति के तरह-तरह के मूल रूप हिन्दुस्तानी सामूहिक सम्पत्ति के विभिन्न स्मों के प्राधार पर समझे जा सकते है। (Karl Marx, "Zur Kritik der Politischen Oekonomier [कार्ल मार्क्स, 'मर्यशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास'], पृ. १०।) 11