पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२२ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ स्वयं माल पूंजी के ही परिचलन काल की निरपेक्ष सीमा है। कोई माल जितना ही नाशवान होता है और इसलिए उत्पादन के वाद जितना ही जल्दी उसका उपभोग, अतः उसकी विक्री करना आवश्यक होता है, उतना ही उसके उत्पादन स्थल से उसके हटाये जाने की क्षमता सीमित होती है ; अतः उसके परिचलन का स्थानिक दायरा जितना ही संकुचित होता है, उसके बेचे जा सकनेवाले वाज़ार भी उतने ही स्थानवद्ध होते हैं। इस कारण कोई माल जितना ही नाशवान होता है, और उसकी भौतिक विशेषताओं के कारण पण्य वस्तु की हैसियत से उसके परिचलन काल पर निरपेक्ष परिसीमन जितना ही अधिक होता है, उतना ही पूंजीवादी उत्पादन का विषय बनने की उसकी अनुकूलता कम होती है। ऐसा माल घनी आवादीवाले इलाक़ों में ही अथवा परिवहन की सुविधाएं जहां तक दूरी को कम कर देती हों , वहीं तक पूंजीवादी उत्पादन की सीमाओं में आता है। किसी भी पण्य वस्तु के उत्पादन का कुछ ही लोगों के हाथों में और किसी घनी आवादीवाले इलाक़े में संकेन्द्रण ऐसी चीज़ों, जैसे कि शराव के बड़े कारखानों, बड़ी डेयरियों, आदि के उत्पादों के लिए भी अपेक्षाकृत बड़ा बाजार पैदा कर सकता है। h