पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१३

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१४ भूमिका और ग्रामीण सम्बन्धों-अमरीकी, और खास तौर से स्सी ग्रामीण सम्बन्धों-का अध्ययन किया। उन्होंने मुद्रा बाजार और वैकिंग का, फिर भूविज्ञान और शरीरक्रियाविज्ञान जैसे प्राकृतिक विनानों का भी अध्ययन किया। इस दौर की सामग्री संकलन की उनकी ढेरों कापियों में गणित सम्बन्धी स्वतंत्र अध्ययन कार्य का भी महत्वपूर्ण स्थान है। १८७७ के प्रारम्भ में उनकी हालत इतनी सुधर गयी थी कि वह अपना मुख्य काम फिर जारी कर सकें। मार्च, १८७७ का अन्त उपर्युक्त चार पाण्डुलिपियों की उनकी टिप्पणियों और संदर्भो को लिखने का समय है, जिन्हें दूसरे खंड की सामग्री को नये सिरे से विस्तार देने के लिए आधार वनना था। इस काम की शुल्यात पाण्डुलिपि ५ से होती है, जिसमें फ़ोलियो आकार के ५६ पृष्ठ हैं। यह शुरू के चार अध्यायों की सामग्री है, किन्तु उसे अभी वहुत कम संवारा गया है। मुख्य बातें पादटिप्पणियों में दे दी गयी हैं। सामग्री इकट्ठा तो कर दी गयी है, पर उसकी छानवीन नहीं की गयी। फिर भी यही पहले भाग के सबसे महत्वपूर्ण अंश का पूर्णतम और अन्तिम प्रस्तुतीकरण है। इस सामग्री से प्रेस कापी तैयार करने का पहला प्रयत्न (अक्तूबर, १८७७ के वाद और जुलाई, १८७८ से पहले ) पाण्डुलिपि ६ में किया गया, जिसमें क्वार्टो आकार के केवल सत्रह पन्ने थे और जिसमें पहले अध्याय का अधिकांश आ गया था। इसके बाद दूसरा और आखिरी प्रयत्न पाण्डुलिपि ७ में किया गया, जिसकी लेखन तिथि है २ जुलाई, १८७८, और जिसमें फ़ोलिनो आकार के कुल सात पन्ने ही हैं। लगता है कि इन दिनों मार्क्स ने यह समझ लिया था कि अगर उनके स्वास्थ्य में ग्रामूल परिवर्तन ही न आ गया, तो दूसरे और तीसरे खंडों को विस्तार देने का काम वह इस ढंग से पूरा न कर सकेंगे कि जिससे उनके मन को संतोप हो सके। दरअसल पांचवीं से आठवीं पाण्डुलिपियों में इस बात के चिह्न बहुत अधिक मिलते हैं कि निराशाजनक वीमारी के खिलाफ़ तीव्र संघर्ष चल रहा है। पहले भाग के सबसे कठिन हिस्से को पाण्डुलिपि ५ में नये सिरे से तैयार किया गया था। पहले भाग के वाक़ी हिस्से में और सत्रहवें अध्याय को छोड़कर समूचे दूसरे भाग में कोई बड़ी सैद्धान्तिक कठिनाइयां दरपेश नहीं थीं। लेकिन तीसरे हिस्से को, जिसका सम्बन्ध सामाजिक पूंजी के पुनरुत्पादन और परिचलन से था, उनके विचार में संशोधन की वहुत ज़रूरत थी, क्योंकि पाण्डुलिपि २ में पहले तो पुनरुत्पादन का विवेचन द्रव्य परिचलन को ध्यान में रखे विना किया गया था, जो इस पुनरुत्पादन को सम्भव बनाता है, और वाद में इसी सवाल का द्रव्य परिचलन को ध्यान में रखते हुए विवेचन फिर किया गया था। इसे दूर करना ज़रूरी था और इस भाग को पूरी तरह फिर से यों लिखना था कि वह लेखक के विस्तृततर विचार-क्षितिज के अनुरूप हो। इस प्रकार पाण्डुलिपि ८ का जन्म हुआ, जिसमें क्वाटों आकार के केवल सत्तर पन्ने थे। इस पाण्डुलिपि की तुलना छपे हुए तीसरे भाग से करें और केवल वे हिस्से छोड़ दें, जो पाण्डुलिपि २ से यहां शामिल किये गये हैं, तो यह पूरी तरह स्पप्ट हो जायेगा कि उन सत्तर पन्नों में मार्क्स कितनी विशाल सामग्री समेट सके थे। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के मार्क्सवाद-लेनिनवाद संस्थान ने मार्क्स द्वारा रुसी स्रोतों से लिये उद्धरणों को अंशतः प्रकाशित किया है ( देखिये 'पाखीव माक्र्सा इ एंगेल्सा' [मार्क्स-एंगेल्स अभिलेख], खंड ११, १६४८; मास्को, १९५२ तथा खंड १३, मास्को, १९५५)।-सं० मास्को, खंड १२,