भूमिका १५ , - यह पाण्डुलिपि भी विषय का प्राथमिक विवेचन ही प्रस्तुत करती है, क्योंकि उसका मुख्य उद्देश्य उस दृष्टिकोण को सुनिश्चित तथा विकसित करना था, जिसे पाण्डुलिपि २ की तुलना में वाद में प्राप्त किया गया था। ऐसा करते हुए उन बातों को छोड़ देना था, जिनके वारे में नया कुछ कहने को नहीं था। दूसरे भाग के अध्याय सत्रह के एक महत्वपूर्ण अंश को, जो तीसरे भाग के साथ न्यूनाधिक संवद्ध है, पुनः विस्तार देते हुए तैयार किया गया था। यहां तर्कसंगति अक्सर टूट जाती है, कई जगह विषय विवेचन में वीच की आवश्यक कड़ियां गायव हैं और सारा विवेचन , ख़ास तौर से निष्कर्षवाला हिस्सा, कहीं-कहीं सातत्यहीन और अपूर्ण है। फिर भी इस विषय पर मार्क्स जो कुछ भी कहना चाहते थे , उसे जैसे-तैसे कह दिया गया है। दूसरे खंड के लिए यही सब सामग्री थी, जिसका मुझे "कुछ बनाना था", जैसा कि मृत्यु से कुछ दिन पहले मार्क्स ने अपनी पुत्री एलियानोर से कहा था। मैंने इस कार्यभार को इन शब्दों के बहुत संकुचित अर्थ में ही ग्रहण किया है। जहां तक ज़रा भी गुंजाइश थी, मैंने अपने काम को एक ही विवेचन के जितने भी भिन्न रूप सुलभ थे, उन्हीं में से एक का चयन करने तक ही सीमित रखा है। मैंने अपने काम को सदा मार्क्स द्वारा सबसे आखिर में सम्पादित और सुलभ पाण्डुलिपि को आधार बनाकर और उससे पहले की पाण्डुलिपियों से तुलना करते हुए ही किया है। केवल पहले और तीसरे भागों में ऐसी वास्तविक कठिनाइयां सामने आयीं, जो मात्र तकनीकी नहीं थीं, और इनकी संख्या सचमुच काफ़ी थी। मैंने प्रयत्न किया है कि मार्क्स की चिन्तन पद्धति को ध्यान में रखते हुए उसी के अनुरूप इन्हें हल करूं। मूलपाठ में जहां भी तथ्यों की पुष्टि के लिए उद्धरण दिये गये हैं, या जव मूलकृति मामले की पूरी तरह से छानबीन करना चाहनेवाले हर किसी को उपलब्ध है, जैसे ऐडम स्मिथ से लिये अंशों, मैंने उनका अनुवाद कर दिया है। ऐसा करना सिर्फ दसवें अध्याय में ही असम्भव था, क्योंकि वहां स्वयं अंग्रेज़ी मूलपाठ की ही आलोचना की गयी है। पहले खंड से जो उद्धरण दिये गये हैं, उनकी पृष्ठ संख्या उसके दूसरे संस्करण के अनुसार है, जो मार्क्स के जीवन काल में निकलनेवाला उसका अन्तिम संस्करण था। . तीसरे खंड के लिए -Zur Kritik के पाण्डुलिपि रूप में पहले · निरूपण के अलावा, पाण्डुलिपि ३ के उपरिवर्णित भागों के अलावा और उद्धरण लिखने की विभिन्न कापियों में विखरी कुछ विरल संक्षिप्त टिप्पणियों के अलावा सिर्फ़ निम्नलिखित सामग्री ही उपलब्ध है : १८६४-६५ की फ़ोलियो आकार की पाण्डुलिपि , जिसका उल्लेख पहले हो चुका है, जिसे लगभग उतना ही तैयार किया जा चुका है कि जितना दूसरे खंड की पाण्डु- लिपि २ को। इसके अलावा १८७५ की एक नोटबुक - लाभ की दर से वेशी मूल्य की दर का सम्बन्ध -है, जिसमें विवेचन गणितीय पद्धति से ( समीकरणों के रूप में) किया गया है। इस खंड को प्रकाशन के लिए तैयार करने का काम तेज़ी से चल रहा है। अभी जहां तक मैं अन्दाज़ लगा पाया हूं, वहुत थोड़े से, किन्तु वहुत महत्वपूर्ण अंशों के अलावा यहां मुख्यतः तकनीकी कठिनाइयां ही सामने आयेंगी। . मैं समसता हूं कि यह उस आरोप का खंडन करने का उपयुक्त अवसर है, जो मार्क्स पर पहले जहां-तहां कानाफूसी के जरिये लगाया जाता था, लेकिन इधर उनकी मृत्यु के बाद जिसे जर्मनी के राजकीय और पीठस्थ समाजवादियों और उनके लगुणों-भगुओं ने स्थापित सत्य
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