पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१४५

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१४४ पूंजी का प्रावर्त १) द्र. द्र', २) उ . . . उ तथा ३) मा' मा' -ये तीन रूप निम्नलिखित भेद प्रकट करते हैं : दूसरे रूप (उ उ) में प्रक्रिया का नवीकरण , पुनरुत्पादन प्रक्रिया , वास्त- विकता के रूप में प्रकट होती है , जब कि पहले रूप में केवल सम्भाव्यता के रूप में , किन्तु दोनों तीसरे रूप से इस बात में भिन्न हैं कि पेशगी दिया हुआ पूंजी मूल्य - वह चाहे द्रव्य रूप में दिया गया हो , चाहे उत्पादन के भौतिक तत्वों के रूप में - प्रारम्भ विन्दु होता है और इसलिए प्रत्यावर्तन विन्दु भी होता है। द्र-द्र' में प्रत्यावर्तन द्र'=द्र+द्र द्वारा व्यंजित होता है। यदि प्रक्रिया का नवीकरण उसी पैमाने पर हो, तो द्र फिर प्रारम्भ विन्दु हो जाता है, और द्र उसमें प्रवेश नहीं करता , वरन केवल यह दिखाता है कि द्र पूंजी के रूप में स्वसारित हा है और इसलिए उसने वेशी मूल्य , वे, का सृजन किया है, पर उसे त्याग दिया है। उ उ रूप में इसी तरह उत्पादन तत्वों के रूप में पेशगी दिया गया पूंजी मूल्य उ भी प्रारम्भ विन्दु है। इस रूप में उसका स्वप्रसार भी शामिल है। यदि साधारण पुनरुत्पादन होता है, तो वही पूंजी मूल्य उसी उ रूप में उसी प्रक्रिया का नवीकरण करता है। यदि संचय होता है, तो उ' (मूल्य परिमाण में द्र' के बराबर , जो मा' के वरावर है), प्रसारित पूंजी मूल्य के रूप में प्रक्रिया को पुनः शुरू कर देता है। किन्तु प्रक्रिया फिर पेशगी पूंजी मूल्य के मूल रूप में शुरू होती है, यद्यपि यह पूंजी मूल्य पहले से बड़ा होता है। इसके विपरीत तीसरे रूप में पूंजी मूल्य प्रक्रिया को पेशगी रूप में नहीं, वरन पहले से विस्तारित मूल्य की हैसियत से , माल रूप में विद्यमान समग्र धन की हैसियत से पेशगी पूंजी मूल्य जिसका अंश मान है, प्रारम्भ करता है। यह अन्तिम रूप तीसरे भाग के लिए महत्वपूर्ण है, जहां अलग-अलग पूंजियों की गति का कुल सामाजिक पूंजी की गति सिलसिले में विवेचन किया गया है। किन्तु इसका उपयोग पूंजी के आवर्त के सिलसिले में नहीं करना है, जो हमेशा पूंजी मूल्य के पेशगी दिये जाने से शुरू होता है - चाहे यह द्रव्य रूप में हो, चाहे माल रूप में - और जो चक्रावर्ती पूंजी मूल्य के लिए जिस रूप में वह पेशगी दिया गया था, उसी रूप में वापस पाना आवश्यक वना देता है। पहले और दूसरे परिपथों में से पहला मूलतः वेशी मूल्य के निर्माण पर आवर्त के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए तथा दूसरा उत्पाद के निर्माण पर उसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए उपयोगी है। अर्थशास्त्रियों ने परिपथों के विभिन्न रूपों में बहुत कम भेद किया है, न उन्होंने पूंजी के आवर्त के सिलसिले में उनका अलग-अलग परीक्षण ही किया है। साधारणतः वे द्र ...द्र' रूप पर विचार करते हैं, क्योंकि वह वैयक्तिक पूंजीपति पर हावी रहता है और उसके परि- कलनों में सहायता करता है, फिर चाहे धन लेखा द्रव्य के रूप में ही प्रारम्भ विन्दु हो। दूसरे लोग उत्पादन तत्वों के रूप में परिव्यय से शुरू करके प्रतिफलों की प्राप्ति के विन्दु तक आते हैं, पर प्रतिफलों के रूप का- वह माल रूप में होता है या द्रव्य रूप में-उल्लेख भी नहीं करते। उदाहरण के लिए, "परिव्यय किये जाने के समय से लेकर प्रतिफल प्राप्ति तक उत्पादन का सारा दौर... आर्थिक चक्र है। कृषि में वुअाई का समय उसका प्रारम्भ है और फ़सल कटाई उसका एस० पी० न्यूमैन : Elements of Political Economy, एंडोवर और न्यूयार्क, पृष्ठ ८१। अन्य लोग मा' (तीसरे रूप) से शुरू करते हैं। , 11 अवसान।