पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१६४

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स्थायी पूंजी तथा प्रचल पूंजी किन्तु उसे प्रचल पूंजी में रखना अधिक संगत होगा, क्योंकि वह चालू खर्च में सामने आती है। निस्सन्देह लेखाकरण विधि से खाते में दर्ज वास्तविक स्थिति में कोई फ़र्क नहीं पड़ता। किन्तु इस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि बहुत से व्यवसायों में मरम्मत ख़र्चों को आम तौर से स्थायी पूंजी की वास्तविक छीजन के साथ निम्नलिखित ढंग से दिखाया जाता है : मान लीजिये , पेणगी स्थायी पूंजी १०,००० पाउंड है और उसका टिकाऊपन - जीवन काल १५ साल है। तब सालाना छीजन ६६६ २/३ पाउंड होगी। किन्तु मूल्य ह्रास का परिकलन केवल १० साल के टिकाऊपन पर किया गया है। दूसरे शब्दों में, ६६६ २/३ पाउंड के बदले १,००० पाउंड स्थायी पूंजी की छीजन के लिए उत्पादित मालों की कीमत में प्रति वर्ष जोड़े जाते हैं । इस प्रकार ३३३ १/३ पाउंड मरम्मत , वगैरह के लिए आरक्षित रहते हैं ( १० और १५ की संख्याएं केवल मिसाल के लिए ली गयी हैं ) । यह रक़म मरम्मत पर औसत रूप में इस तरह खर्च की जाती है कि स्थायी पूंजी १५ साल चल सके । स्वभावतः इस तरह का हिसाब-किताव मरम्मत पर खर्च की जानेवाली अतिरिक्त पूंजी तथा स्थायी पूंजी को भिन्न संवर्गों के अन्तर्गत आने से नहीं रोक सकता। परिकलन की इस पद्धति के बल पर, उदाहरण के लिए, यह माना गया था कि वाप्प पोतों के अनुरक्षण और प्रतिस्थापन की न्यूनतम अनुमानित लागत सालाना १५ फ़ीसदी होगी , अतः पुनरुत्पादन काल ६ २/३ साल होगा। सातवें दशक में, अंग्रेज़ सरकार ने पेनिनसुलर एण्ड ओरियेंटल कम्पनी को ६ १/३ वर्षों के पुनरुत्पादन काल के अनुरूप सालाना १६ फ़ीसदी के हिसाब से क्षतिपूरण किया था। रेलमार्गों पर इंजन का औसत जीवन काल १० साल होता है, किन्तु मरम्मत के लिहाज़ से कूता मूल्य ह्रास १२ १/२ प्रतिशत माना जाता है, जिससे उसका टिकाऊपन घटकर ८ साल हो जाता है। माल और मुसाफ़िर गाड़ियों के मामले में यह अनुमान ६ प्रतिशत अथवा ११ १/६ साल का टिकाऊपन है। मकानों और ऐसी दूसरी चीज़ों के सिलसिले में, जो अपने मालिकों के लिए स्थायी पूंजी और जिन्हें इसी रूप में किराये पर दिया जाता है, क़ानून ने सभी जगह एक से अोर सामान्य मूल्य ह्रास में , जो समय बीतने से, प्राकृतिक प्रभावों से और साधारण छीजन से , और दूसरी ओर , कभी-कभी की जानेवाली उस मरम्मत में भेद किया है, जो भवन के सामान्य जीवन काल में और उसके साधारण उपयोग के दौरान रख-रखाव के लिए जव-तव ज़रूरी होती है। साधा- रणतया सामान्य मूल्य ह्रास मालिक के हिस्से में और समय-समय पर की जानेवाली मरम्मत किरायेदार के हिस्से में आते हैं। इसके अलावा मरम्मत दो तरह की होती है , मामूली मरम्मत और भारी मरम्मत । भारी मरम्मत अंशतः स्थायी पूंजी का उसके भौतिक रूप में नवीकरण होती है, और यह भी मालिक के हिस्से में आती है, वशर्ते कि पट्टे में स्पष्टतः दूसरी वात न कही गयी हो । मिसाल के लिए , अंग्रेज़ी क़ानून को ले लीजिये : “दूसरी ओर , किरायेदार वर्षानुवर्ष स्थान को हवा और पानी से रक्षित रखने के , जब ऐसा 'भारी' मरम्मत के विना किया जा सकता है, और आम तौर से उचित रूप में 'मामूली' शीर्षक के अंतर्गत आनेवाली मरम्मत के अलावा और कुछ करने के लिए वाध्य नहीं है। स्थान के उन भागों के मामले में भी, जो 'मामूली' मरम्मत के विपय हैं, उसके क़ब्जा लेने के समय उनकी उम्र, सामान्य दशा और अवस्था का ध्यान रखा जाना चाहिए, क्योंकि वह पुराने और घिसे-पिटे माल की नये माल से प्रतिस्थापना करने और समय : और साधारण घिसने-छीजने से जनित अनिवार्य मूल्य ह्रास की बहाली करने के लिए वाध्य नहीं है। " (होल्ड्सवर्ष , Law of Landlord and Tenant, पृष्ठ ६० और ११ ।) 1 , ,