पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१६५

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१६४ पूंजी का आवर्त . . टीजन और अनुरक्षण तथा मरम्मत के काम के प्रतिस्थापन से एकदम भिन्न वोमा है, जो असाधारण प्राकृतिक परिघटनात्रों, आग, वाद, आदि से जनित विनाश से संबंध रखता है। इसकी क्षतिपूर्ति बेशी मूल्य से करनी होती है और उससे एक कटौती होती है। अथवा समूचे तौर पर समाज के दृष्टिकोण से विचार करें, तो निरन्तर अतिरिक्त. उत्पादन , अर्थात जनसंख्या में वृद्धि दरकिनार , विद्यमान धन के साधारण प्रतिस्थापन और पुनरुत्पादन के लिए अावश्यक पैमाने से अधिक बड़े पैमाने पर उत्पादन होना चाहिए, जिससे कि दुर्घटनाओं और प्राकृतिक शक्तियों से जनित असाधारण विनाश की क्षतिपूर्ति करने के लिए आवश्यक उत्पादन साधन बने रहें। वास्तव में प्रतिस्थापन के लिए आवश्यक पूंजी का अल्पतम भाग ही आरक्षित द्रव्य निधि में आता है। उसका सबसे बड़ा हिस्सा स्वयं उत्पादन पैमाने के विस्तार में आता है, जो अंशत: वास्तविक प्रसार होता है और अंशतः स्थायी पूंजी पैदा करनेवाली उद्योग शाखाओं में उत्पादन के सामान्य परिमाण के अन्तर्गत होता है। उदाहरण के लिए, मशीन निर्माण कारखाने को सारा इन्तज़ाम यों करना चाहिए कि उसके ग्राहकों के कारखानों का वार्पिक विस्तार हो सके और उनमें से कुछ हमेशा आंशिक अथवा सम्पूर्ण पुनरुत्पादन की आवश्यकता में रहें। सामाजिक प्रीसत के अनुसार छीजन की मात्रा और मरम्मत खर्च के निर्धारण से अनिवार्यतः परिस्थितियों में और उद्योग की उसी शाखा में कार्यशील अन्य समान आकार के पूंजी निवेशों में भी बहुत बड़ी विपमता प्रकट होती है। व्यवहार में कोई मशीन , वगैरह एक पूंजीपति के पास औसत मीयाद से ज़्यादा चलती है, तो दूसरे पूंजीपति के पास उतना नहीं चलती। एक के लिए मरम्मत ख़र्च औसत से ऊपर होता है, दूसरे के लिए उससे नीचे, इत्यादि। किन्तु छीजन से और मरम्मत ख़र्च से मालों की कीमत में होनेवाली वृद्धि एक सी रहती है और औसत द्वारा निर्धारित की जाती है। इसलिए एक को इस अतिरिक्त क़ीमत में वस्तुतः उससे ज्यादा मिलता है, जितना उसने वस्तुतः जोड़ा था, तो दूसरे को कम मिलता है। इस स्थिति तथा अन्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप, जिनसे व्यवसाय की एक ही शाखा में श्रम शक्ति के समान मात्रा में शोपण से भिन्न-भिन्न पूंजीपतियों को भिन्न-भिन्न लाभ होते हैं, वेशी मूल्य के वास्तविक स्वरूप को पहचानने की कठिनाई और बढ़ जाती है। वास्तविकं मरम्मत और प्रतिस्थापन के वीच , अनुरक्षण ख़र्च और नवीकरण लागत के वीच की सीमा-रेखा ज़रा लचीली होती है। इसी से यह शाश्वत विवाद पैदा होता है कि - मिसाल के लिए, रेल व्यवसाय में- कोई ख़र्च मरम्मत का है या प्रतिस्थापन का, उसकी अदायगी चालू व्यय से की जानी चाहिए या मूल कोप से। मरम्मत ख़र्च को प्राय खाते के वदले पूंजी खाते में स्थानान्तरित करना वह सुपरिचित तरीक़ा है, जिसके ज़रिये रेलों के निदेशक मंडल कृत्रिम तरीकों से अपने लाभांश बढ़ाते हैं। लेकिन अनुभव इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण सुराग प्रदान कर चुका है। उदाहरण के लिए, लार्डनर के अनुसार किसी रेलमार्ग के प्रारम्भिक जीवन काल में आवश्यक हुए अनुवर्ती श्रम को "मरम्मत का नाम न देना चाहिए , बल्कि रेलमार्ग के निर्माण का तात्विक भाग मानना चाहिए और वित्तीय हिसाव में उसे पूंजी खाते में डालना चाहिए, न कि आय खाते में, क्योंकि यह ख़र्च छीजन के या यातायात के वाजिव काम के कारण नहीं, वरन रेलमार्ग के निर्माण की मूल और अनिवार्य अपूर्णता से उत्पन्न होता है" ( लार्डनर, उप० पृष्ठ ४०) । “एकमात्र सही तरीका प्राय के अर्जन में अनिवार्यतः हुए मूल्य ह्रास को सालाना आय से काटना है, चाहे यह रक़म सचमुच खर्च की गई हो, या न की गई हो" ( कैप्टन फ़ित्समोरिस , Committee of Inquiry on Caledonian Railway, Money Market Review, १८६७, में प्रकाशित )।