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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१८

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भूमिका १७ रॉदवेर्टस में पाये जाने के बारे में रहस्यमय कानाफूसी की कुछ भनक मार्क्स के कानों तक पहुंची, तब उन्होंने वह पत्र यह कहते हुए मुझे दिखाया कि ख द रॉदवेर्टस जिस वात का दावा करते हैं , आख़िर उसकी प्रामाणिक सूचना यहां उन्हें मिल गयी है। अगर रॉदवेर्टस का दावा इतना ही है, तो उन्हें, यानी मार्क्स को, कोई आपत्ति नहीं। उनकी तरफ़ से रॉदवेर्टस मज़े में यह सोचकर ख श होते रहें कि उनका वयान अधिक स्पष्ट और संक्षिप्त है। दरअसल मार्क्स के विचार में रॉदवेर्टस के इस पन से मामला ख़त्म हो गया था। उनका ऐसा सोचना और भी स्वाभाविक था, क्योंकि मुझे निश्चित रूप से मालूम है कि १८५६ के आसपास तक रॉदवेर्टस की साहित्यिक गतिविधि से मार्क्स ज़रा भी परिचित नहीं थे, जब उन्होंने अपनी अर्थशास्त्र की आलोचना की मूल रूपरेखा ही नहीं, वरन इसके महत्वपूर्णतम व्यौरे भी तैयार कर लिये थे। मार्क्स ने अपना अर्थशास्त्र सम्बन्धी अध्ययन १८४३ में पेरिस प्रारम्भ किया था और शुरूपात उन्होंने महान अंग्रेज़ और फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों से की थी। जर्मन अर्थशास्त्रियों में उन्होंने केवल राउ और लिस्ट को पढ़ा था, और उनके अलावा दूसरों को पढ़ने की उन्होंने ज़रूरत न समझी। रॉदवेर्टस के अस्तित्व के बारे में १८४८ तक न मार्क्स ने और न मैंने ही कुछ सुना था , जब बर्लिन के डेपुटी की हैसियत से उनके भाषणों और मंत्री की हैसियत से उनके कामों की आलोचना Neue Rheinische Zeitung* में हमें करनी पड़ी थी। हम दोनों इतने अजानकार थे कि हमें राइन के डेपुटियों से पूछना पड़ा कि यह रॉदवेर्टस कौन है, जो इतना अकस्मात मंत्री बन बैठा है। किन्तु रॉदवेर्टस के अर्थशास्त्रीय लेखन के बारे में ये डेपुटी भी हमें कुछ नहीं बता पाये। इधर मार्क्स रॉदबेर्टस की सहायता के विना भी उस समय तक इतना ही नहीं कि “पूंजीपति का वेशी मूल्य" कहां पैदा होता है, वरन यह भी जान गये थे कि कैसे पैदा होता है। यह १८४७ में प्रकाशित उनकी पुस्तक Poverty of Philosophy** और उसी साल ब्रसेल्स में उजरती श्रम तथा पूंजी पर दिये उनके व्याख्यानों से भी, जो १८४६ में Neue Rheinische Zeitung के अंक २६४-२६६ में प्रकाशित हुए थे , *** सिद्ध हो जाता है। केवल १८५६ में ही लासाल के माध्यम से मार्क्स को पता चला कि रॉदबेर्टस नाम का भी कोई अर्थशास्त्री है और तब ब्रिटिश म्यूजियम में जाकर उन्होंने उनका 'तीसरा सामाजिक पत्र' देखा। वास्तविक परिस्थितियां ये थीं। अब देखना चाहिए कि वह विषय-वस्तु कौन सी है , जिसे रॉदवेर्टस के यहां से “लूटने" का मार्क्स पर आरोप लगाया गया है। रॉदवेर्टस का कथन है, "अपने तीसरे सामाजिक पत्र में मैंने वस्तुतः मार्क्स जैसे तरीके से ही, किन्तु अधिक स्पष्टता से और संक्षेप में, दिखाया है कि पूंजीपति के वेशी मूल्य का स्रोत क्या है।" तो बात की जड़ यही है - वेशी मूल्य का सिद्धान्त। और सचमुच यह वताना मुश्किल होगा कि मार्क्स के यहां ऐसी दूसरी कौन सी चीज़ थी कि जिसे रॉदवेर्टस अपनी मिल्कियत कहते। इस तरह .

  • Neue Rheinische Zeitung. Organ der Dermokratie -१ जून, १८४८ से

१६ मई, १८४६ तक कोलोन से मार्क्स के संपादकत्व में प्रकाशित रोज़ाना अख़वार। फ्रेडरिक एंगेल्स , विल्हेल्म वोल्फ़, गेोर्ग वीर्थ, फ़र्दीनंद वोल्फ़, एस्त द्रोंके , फ़र्दीनंद फैलिगराथ तथा हेनरिक वर्गर्स इसके संपादकों में थे। इस अख़बार का प्रकाशन प्रशाई सरकार द्वारा मार्क्स तथा अन्यों पर दमन के कारण बंद कर दिया गया।-सं० K. Marx, The Poverty of Philosophy, Moscow, 1962. - -सं० 'का० मार्क्स , 'उजरती श्रम और पूंजी', मास्को, प्रगति प्रकाशन, १९६४ । - सं०

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