पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१९

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१८ भूमिका " २ रॉदबेर्टन यहां घोषित करते हैं कि वेशी मूल्य के सिद्धान्त के असली जन्मदाता वह हैं और उसे मार्क्स ने उनसे लूट लिया है। हां, तो तीसरे सामाजिक पत्र में वेशी मूल्य के उद्भव के बारे में लिखा गया क्या है ? केवल यह कि “किराया"- यह उन्हीं का शब्द है, जिसमें किराया जमीन और लाभ को नत्यी कर दिया गया है- पण्य के मूल्य में “मूल्य जोड़ने" से नहीं, बल्कि “ मजदूरी में मूल्य की कटौती से उत्पन्न होता है। दूसरे शब्दों में, चूंकि मजदूरी उत्पाद के मूल्य का एक हिस्सा मात्र ही होती है," और यदि श्रम काफ़ी उत्पादक हो, तो यह आवश्यक नहीं है कि मजदूरी श्रम के उत्पादन के नैसर्गिक विनिमय मूल्य के बरावर हो, जिससे कि पूंजी के प्रतिस्थापन के लिए (! ) और किराये के लिए इस मूल्य का काफ़ी हिस्सा वच जाये।" लेकिन हमें यह नहीं बताया जाता कि उत्पाद का वह "नैसर्गिक विनिमय मूल्य" क्या है, जो "पूंजी के प्रतिस्थापन" के लिए कुछ नहीं छोड़ता, फलतः कच्चे माल और औजारों के छीजन के प्रतिस्थापन के लिए कुछ नहीं छोड़ता। यह हमारा सौभाग्य है कि हम वता सकते हैं कि रॉदवेर्टस की इस महान खोज का मार्क्स के मन पर क्या प्रभाव पड़ा। Zur Kritik पाण्डुलिपि, कापी १०, पृष्ठ ४४५ और आगे के पृष्ठों में लिखा है : “विषयान्तर। श्री रॉदवेर्टस। किराया जमीन का नया सिद्धान्त । मार्क्स सिर्फ इसी दृष्टिकोण से वहां तीसरा सामाजिक पत्र देखते हैं। रॉदवेर्टस के वेशी मूल्य के सिद्धान्त को समूचे तौर पर एक व्यंग्योक्ति से ही ख़त्म कर दिया गया है : "श्री रॉदवेर्टस पहले उस देश की हालत का विश्लेपण करते हैं, जहां भूगत संपत्ति और पूंजीगत संपत्ति अभी अलग-अलग नहीं हुई हैं और तब वह इस महत्वपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि किराया ( जिससे उनका आशय है समस्त वेशी मूल्य से ) केवल उस निर्वतन श्रम के वरावर, अथवा उत्पाद की उस माना के वरावर होता है, जिसमें वह श्रम अभिव्यक्त होता है। पूंजीमना मनुष्य कई शताब्दियों से वेशी मूल्य पैदा करता आया है और अब धीरे-धीरे उस ठिकाने पहुंच गया है कि उसके उद्भव पर विचार कर सके। पहले पहल प्रस्तुत विचार- दृष्टि सीधे वाणिज्यिक कारोबार की उपज थी-वेशी मूल्य उत्पाद के मूल्य में कुछ जोड़ने से पैदा होता है। यह धारणा वाणिज्यवादियों में प्रचलित थी। लेकिन जेम्स स्टूअर्ट ने तभी यह महसूस कर लिया था कि वैसी हालत एक आदमी जितना पायेगा, दूसरा आदमी अवश्य ही उतना खोयेगा। फिर भी यह धारणा काफ़ी समय तक रही, ख़ास तौर से समाजवादियों में। लेकिन ऐडम स्मिथ ने उसे क्लासिकी अर्थशास्त्र से निकाल वाहर किया। Wealth of Nations, खंड १, अध्याय ६ में वह कहते हैं : “जैसे ही कुछ व्यक्तियों के पास स्टॉक का संचय हो जाता है, उनमें से कुछ व्यक्ति , स्वभावतः, उद्योगी लोगों को काम में लगाकर उसका उपयोग करते हैं, जिन्हें वे सामान और निर्वाह साधन देते हैं, ताकि उनका काम वेचकर लाभ अथवा सामान के मूल्य में उनके श्रम द्वारा जो वृद्धि होती है, उससे लाभ कमायें... इसलिए श्रमिक सामान में जिस मूल्य की वृद्धि करते हैं, वह स्वयं यहां दो

  • Rodbertus-Jagetzow, Karl, Soziale Briefe an von Kirchmann. Dritter Brief:

Widerlegung der Ricardoschen Lehre von der Grundrente und Begründung einer neuen Rententheorie, Berlin, 1851, S. 87. -

    • K. Marx, Theorien über den Mehrwert (Vierter Band des Kapitals), 2 Teil,

Berlin, 1959, SS. 7-8. -