पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०६ पूंजी का प्रावत परिघटना पर विचार किया जाये, तो ये भेद वस्तुतः अनुरूप हो जाते हैं। उद्योग की विभिन्न शाखाओं में निवेशित विविध पूंजियों के बीच सामाजिक वेशी मूल्य के वितरण में , पूंजी के पेशगी दिये जाने की भिन्न-भिन्न अवधियों ( उदाहरण के लिए स्थायी पूंजी के टिकाऊपन की विभिन्न मानाएं ) में अंतर तथा पूंजी की भिन्न-भिन्न आंगिक संरचना (और इसलिए स्थिर तथा परिवर्ती पूंजी के भिन्न परिचलन भी ) समान रूप से लाभ की सामान्य दर के समीकरण में और मूल्यों को उत्पादन की कीमतों का रूप देने में योगदान करते हैं। दूसरे, परिचलन प्रक्रिया के दृष्टिकोण से हमारे पास एक ओर श्रम के उपकरण - स्थायी पूंजी - और दूसरी ओर श्रम की सामग्री तथा मजदूरी-प्रचल पूंजी-हैं। किंतु श्रम प्रक्रिया और स्वप्रसार के दृष्टिकोण से हमारे पास एक ओर उत्पादन साधन (श्रम के उपकरण तथा श्रम की सामग्री) - स्थिर पूंजी - हैं ; दूसरी ओर श्रम शक्ति – परिवर्ती पूंजी - है। पूंजी की आंगिक संरचना के लिए इस बात का कुछ भी महत्व नहीं है (Buch I, Kap. XXIII, 2, p. 647)* कि स्थिर पूंजी के मूल्य की एक निर्दिष्ट मात्रा में श्रम के बहुत से उपकरण और श्रम की थोड़ी ही सामग्री है अथवा बहुत सी श्रम सामग्री है और थोड़े से श्रम उपकरण हैं, जब कि हर चीज़ उत्पादन साधनों में लगाई हुई पूंजी तथा श्रम शक्ति में लगाई हुई पूंजी के आपसी अनुपात पर निर्भर करती है। इसी प्रकार इसके विपरीत परिचलन प्रक्रिया के , स्थायी और प्रचल पूंजी के भेद दृष्टिकोण यह उतना ही महत्वहीन है कि प्रचल पूंजी के मूल्य की कोई माना विशेष श्रम सामग्री तथा मजदूरी में किस अनुपात में विभक्त होती है। इनमें से एक दृष्टिकोण से श्रम शक्ति में लगाये पूंजी मूल्य के प्रतिमुख श्रम सामग्री उसी संवर्ग में रखी जाती है, जिसमें श्रम उपकरण होते हैं ; दूसरे दृष्टिकोण से श्रम शक्ति में लगाया पूंजी अंश श्रम उपकरणों में लगाये अंश के प्रतिमुख श्रम सामग्री में लगाये पूंजी अंश के साथ आता है। इस कारण रिकार्डो के सिद्धांत में श्रम सामग्री ( कच्चे माल और सहायक सामग्री ) में लगाये पूंजी मूल्य का अंश दोनों में से किसी ओर प्रकट नहीं होता। वह पूर्णतः विलुप्त हो जाता है; कारण यह कि उसे स्थायी पूंजी के साथ रखा नहीं जा सकता, क्योंकि उसकी परिचलन पद्धति थम शक्ति में लगाये पूंजी अंश की परिचलन पद्धति के पूर्णतः अनुरूप । दूसरी ओर उसे प्रचल पूंजी के साथ नहीं रखा जा सकता, क्योंकि उस हालत में स्थायी और प्रचल पूंजी का स्थिर और परिवर्ती पूंजी के वैपरीत्य के साथ तादात्म्य , जिसे ऐडम स्मिथ ने विरासत में दिया था और चुपचाप बनाये रखा गया है, अपने आपको मिटा देगा। रिकाडों में इतना अधिक तार्किक सहज बोध है कि वह इसे अनुभव किये विना नहीं रह सकते थे और इसी कारण पूंजी का वह भाग उनकी नजरों से पूर्णतया अनदेखा रह जाता है। यहां इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि पूंजीपति- राजनीतिक अर्थशास्त्र की अपनी विशिष्ट बोली में - मजदूरी में लगाई हुई पूंजी विभिन्न अवधियों के लिए इस वात के अनुसार पेशगी देता है कि वह यह मजदूरी हफ़्तेवार देता है, या माहवार, या तिमाही। लेकिन वास्तव में इसका उलटा ही होता है। हफ्ते , महीने या तीन महीने के लिए मजदूर अपना श्रम पूंजीपति को पेशगी देता है और इस बात के अनुसार देता है कि उसका भुगतान हफ़्तेवार होगा या माहवार, या तिमाही। यदि पूंजीपति ने श्रम शक्ति के लिए भुगतान करने के बजाय उसे खरीदा होता, दूसरे शब्दों में, यदि उसने मजदूर को उसकी मजदूरी एक दिन, एक 1

  • हिंदी संस्करण : अध्याय २५, २, पृष्ठ ६६६-७००।-सं०

1