पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१९८

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स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धांत। रिकार्डो १६७ . . हफ्ते , एक महीने या तीन महीने के लिए पेशगी दी होती, तो उसका यह दावा ठीक होता कि उसने इन मीयादों के लिए मजदूरी पेशगी दी है। लेकिन चूंकि वजाय इसके कि जितने समय तक श्रम को चालू रहना है, उतने समय के लिए वह उसे ख़रीदे और उसके लिए भुगतान करे, वह भुगतान तव करता है, जब श्रम कई दिनों, हफ्तों या महीनों तक चालू रह चुका होता है, इसलिए यह सारा व्यापार पूंजीवादी quid pro quo [तत्प्रतितत] हो जाता है : मजदूर पूंजीपति को श्रम के रूप में जो कुछ पेशगी देता है, वह पूंजीपति द्वारा मजदूर को दिये हुए पेशगी धन वदल दिया जाता है। उससे इस स्थिति में ज़रा भी फ़र्क नहीं पड़ता कि पूंजीपति स्वयं उत्पाद या उसका मूल्य ( उसमें समाविष्ट बेशी मूल्य समेत ) परिचलन से वापस पा जाता है या उसे अपेक्षाकृत न्यूनाधिक अवधि के बाद ही उसके निर्माण अथवा उसके परिचलन के लिए आवश्यक भिन्न-भिन्न अवधियों के अनुसार प्राप्त करता है। माल का विक्रेता इस बात की घेला भर परवाह नहीं करता कि ग्राहक उसका क्या करेगा। पूंजीपति को मशीन इसलिए सस्ती नहीं मिल जाती कि उसे उसका सारा मूल्य एक ही बार में पेशगी देना होता है, जव कि यह मूल्य परिचलन से उसके पास केवल क्रमशः और खंडश : वापस आता है और न वह कपास के लिए ज्यादा पैसा इस कारण देता है कि उससे जो उत्पाद बनता है, उसके मूल्य में कपास का मूल्य पूर्णतः दाखिल हो जाता है और इसलिए वह उत्पाद की विक्री द्वारा एकवारगी और पूर्णतः प्रतिस्थापित हो जाता है। आइये , अब हम रिकार्डो पर लौट आते हैं। १. परिवर्ती पूंजी का चारित्रिक लक्षण यह है कि पूंजी के एक निश्चित , दिये हुए (और इस प्रकार स्थिर ) भाग का, मूल्यों की दी हुई राशि का (जिसे मूल्य में श्रम शक्ति के बरावर माना गया है, यद्यपि मजदूरी श्रम शक्ति के मूल्य के बरावर है, उससे कम है या ज्यादा है, यह यहां महत्वहीन है ) स्वप्रसारवान , मूल्य सृजक शक्ति से , अर्थात श्रम शक्ति से विनिमय होता है, जो केवल पूंजीपति द्वारा दिये अपने मूल्य का ही पुनरुत्पादन नहीं करती, वल्कि साथ-साथ वेशी मूल्य का उत्पादन भी करती है, ऐसा मूल्य , जो पहले विद्यमान नहीं था, जिसका किसी समतुल्य द्वारा भुगतान नहीं किया गया है। जब भी मज़दूरी पर व्यय किये पूंजी अंश पर केवल परिचलन प्रक्रिया के दृष्टिकोण से विचार किया जाता है, मज़दूरी पर व्यय किये जानेवाले पूंजी अंश का यह चारित्रिक लक्षण, जो toto coelo [समग्रतः] परि- वर्ती पूंजी के नाते स्थिर पूंजी से उसे अलग करता है, गायव हो जाता है और इस प्रकार यह पूंजी अंश श्रम उपकरणों पर लगाई गई स्थायी पूंजी से भिन्न प्रचल पूंजी के रूप में प्रकट होता है। यह बात और किसी चीज़ से नहीं, तो इसी तथ्य से स्पष्ट हो जाती है कि तब यह पूंजी अंश स्थिर पूंजी के उस घटक के साथ-साथ एक ही मद - प्रचल पूंजी- के अंतर्गत या जाता है, जो श्रम सामग्री पर लगाया गया है और स्थिर पूंजी के उस दूसरे घटक के प्रतिमुख है, जो धम उपकरणों पर व्यय किया गया है। इस प्रकार वेशी मूल्य को, अतः उस परिस्थिति को ही नज़रंदाज़ कर दिया जाता है, जो मूल्य की लगाई गई राशि को पूंजी में परिवर्तित करती है। इसी तरह इस तथ्य को भी नज़रंदाज़ किया जाता है कि मजदूरी के लिए लगाई जानेवाली पूंजी द्वारा उत्पाद में जिस मूल्यांश की वृद्धि होती है, वह नवउत्पादित होता है ( और इसलिए वास्तव में पुनरुत्पादित होता है), जव कि कच्चे माल द्वारा उत्पाद में जोड़ा मूल्यांश नवउत्पादित नहीं होता , वास्तव में पुनरुत्पादित नहीं होता, वरन मात्र उत्पाद के मूल्य में कायम , संरक्षित रहता है और इसलिए उत्पाद के मूल्य के घटक के रूप में बस पुनः प्रकट 7 7 , - 2