पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२५५

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पूंजी का प्रावर्त . प्रागय उनसे है, जिसे वह द्रव्य पूंजी की “मुक्ति" कहते हैं। उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर वास्तविक स्थिति यह है : कार्य अवधि और परिचलन काल के वीच और इसलिए पूंजी १ और पूंजी २ के बीच जो भी अनुपात हो, पहले आवर्त की समाप्ति पर और उसके बाद एक कार्य अवधि के बराबर नियमित अंतरालों पर पूंजीपति के पास द्रव्य रूप में एक कार्य अवधि के लिए आवश्यक पूंजी, अर्यात पूंजी १ के बरावर राशि वापस आ जाती है। यदि कार्य अवधि ५ हफ़्ते , परिचलन काल ४ हप्ते और पूंजी १ ५०० पाउंड हो, तो ५०० पाउंड के बरावर की द्रव्य राशि 8वें, १४ वें, १६ वें, २४ वें, २६ वें, आदि हफ्ते की समाप्ति पर प्रति वार वापस आ जाती है। यदि कार्य अवधि ६ हफ्ते , परिचलन काल ३ हफ़्ते और पूंजी १ ६०० पाउंड हो, तो ६ वें, १५ वें, २१३, २७ वें, ३३ वें, आदि हफ्ते के अंत में ६०० पाउंड वापस आ जाते हैं। अंततः, यदि कार्य अवधि ४ हपते , परिचलन काल ५ हप्ते और पूंजी १ ४०० पाउंड हो, तो वें, १३ वें, १७ वें, २१ वें, २५ वें, अादि हपते की समाप्ति पर ४०० पाउंड वापस आ जाते हैं। इस वापस आये हुए धन के किसी हिस्से का फ़ालतू होना या न होना , और यदि हो , तो कितना और इसलिए चालू कार्य अवधि के लिए मुक्त होना महत्वहीन है। यह माना गया है कि उत्पादन चालू पैमाने पर निरंतर जारी रहता है, और ऐसा हो, इसके लिए धन सुलभ होना चाहिए और इसलिए वापस भी पाना चाहिए, चाहे वह “मुक्त हो" या न हो। यदि उत्पादन में व्यवधान आता है, तो उसके साथ मुक्ति भी रुक जाती है। दूसरे शब्दों में द्रव्य की मुक्ति वास्तव में होती है ; अतः द्रव्य रूप में अंतर्हित , केवल संभाव्य पूंजी का निर्माण होता है। किंतु ऐसा सभी परिस्थितियों में होता है, उन विशेष अवस्थाओं में ही नहीं, जिनका वर्णन मूल पाठ में किया गया है ; और मूल पाठ में जिस पैमाने की कल्पना की गई है, उससे बड़े पैमाने पर होता है। जहां तक प्रचल पूंजी १ का संबंध है, प्रत्येक आवर्त की समाप्ति पर प्रौद्योगिक पूंजीपति की स्थिति वही होती है, जो व्यवसाय क़ायम करने के समय थी- उसके पास वह सारी की सारी इकमुश्त होती है, किंतु वह उसे उत्पादक पूंजी में शनैः शनैः ही पुनःपरिवर्तित कर सकता है। मूल पाठ में मुख्य बात यह प्रमाण है कि एक ओर प्रौद्योगिक पूंजी का काफ़ी भाग सदा द्रव्य रूप में सुलभ होना चाहिए, दूसरी ओर उससे भी काफ़ी अधिक भाग को अस्थायी रूप से द्रव्य रूप धारण करना होगा। यह प्रमाण मेरी इस अतिरिक्त टिप्पणी से कुछ अधिक पुष्ट ही होता है। -फे० एं०] 1 ५. क़ीमत परिवर्तन का प्रभाव हमने अभी एक अोर अपरिवर्तित कीमतों की और उत्पादन के अपरिवर्तित पैमाने की, और दूसरी ओर परिचलन काल के संकुचन अथवा प्रसार की कल्पना की है। अब इसके विपरीत एक ओर अपरिवर्तित पावर्त अवधि और उत्पादन के अपरिवर्तित पैमाने की , और दूसरी ओर क़ीमत परिवर्तनों की , अर्थात कच्चे माल , सहायक सामग्री और श्रम के दाम में अथवा इनमें से केवल