पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२५८

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पेशगी पूंजी के परिमाण पर पावर्त काल का प्रभाव २५७ में। तव उत्पादन सामग्री में साप्ताहिक निवेश ८० पाउंड होगा और मजदूरी में २० पाउंड । तव ३०० पाउंड की पूंजी २ को भी उत्पादन सामग्री के लिए ४/५ भाग, या २४० पाउंड और मजदूरी के लिए १/५ भाग , या ६० पाउंड में वांटना होगा। मजदूरी में निवेशित पूंजी को हमेशा द्रव्य रूप में पेशगी देना होगा। जैसे ही ६०० पाउंड का माल उत्पाद द्रव्य रूप में पुनःपरिवर्तित होता है या बेच दिया जाता है, उसके ४८० पाउंड उत्पादन सामग्री में ( उत्पा- दक पूर्ति में ) तवदील किये जा सकते हैं, किंतु १२० पाउंड अपना द्रव्य रूप बनाये रखते हैं , ताकि ६ हफ्ते तक मजदूरी की अदायगी के काम आ सकें। ये १२० पाउंड वापस आनेवाली ६०० पाउंड पूंजी का अल्पतम भाग हैं, जिसका हमेशा द्रव्य रूप में नवीकरण और प्रतिस्थापन होते रहना चाहिए और इसलिए जो सदा पेशगी पूंजी के उस अंश रूप में पास रहनी चाहिए, जो द्रव्य रूप में कार्य करता है। अव अगर नियतकालिक रूप से ३ हफ्ते के लिए मुक्त होनेवाले और उसी प्रकार उत्पादक पूर्ति के लिए २४० पाउंड और मजदूरी के लिए ६० पाउंड में विभाज्य ३०० पाउंड में से १०० पाउंड पूर्णतः अलग हो जायें, परिचलन काल के घट जाने से द्रव्य रूप में आवर्त की क्रियाविधि से पूरी तरह वाहर धकेल दिये जायें, तो इस १०० पाउंड की द्रव्य पूंजी के लिए द्रव्य कहां से आयेगा? इस राशि का पांचवां भाग ही नियतकालिक रूप से आवर्तों में मुक्त हुई पूंजी होता है। किंतु ४/५ भाग या ८० पाउंड उसी मूल्य की अतिरिक्त उत्पादक पूर्ति द्वारा पहले ही प्रति- स्थापित हो चुके होते हैं। यह अतिरिक्त उत्पादक पूर्ति किस प्रकार द्रव्य में परिवर्तित होती है और इस परिवर्तन के लिए द्रव्य कहां से आता है ? यदि न्यूनित परिचलन अवधि वास्तविकता बन गई है, तो उपर्युक्त ६०० पाउंड में से ४८० पाउंड के बदले केवल ४०० पाउंड उत्पादक पूर्ति में पुनःपरिवर्तित होते हैं। शेष भाग , या ८० पाउंड अपने द्रव्य रूप में बने रहते हैं और मजदूरी के उपर्युक्त २० पाउंड के साथ १०० पाउंड को निरस्त पूंजी बन जाते हैं। यद्यपि ये १०० पाउंड ०० पाउंड की माल पूंजी की विक्री के ज़रिये परिचलन क्षेत्र से आते हैं और मजदूरी तथा उत्पादन तत्वों में फिर न लगाये जाने के कारण अब उससे निकाल लिये गये हैं, फिर भी यह न भूलना चाहिए कि द्रव्य रूप में होने के कारण वे फिर उसी रूप में आ गये हैं, जिसमें वे परिचलन में मूलतः डाले गये थे। शुरू में ६०० पाउंड उत्पादक पूर्ति और मजदूरी में निवेशित किये गये थे। अब उसी उत्पादन प्रक्रिया को चलाने के लिए केवल ८०० पाउंड दरकार हैं। इस प्रकार द्रव्य रूप में मुक्त १०० पाउंड अब एक नई , नियोजनार्थी द्रव्य पूंजी, मुद्रा बाजार का एक नया घटक बन जाते हैं। सही है कि वे पहले भी नियतकालिक रूप से मुक्त द्रव्य पूंजी तथा अतिरिक्त उत्पादक पूंजी के रूप में रह चुके हैं, किंतु ये अंतर्हित अवस्थाएं स्वयं उत्पादन प्रक्रिया के निष्पादन की पूर्वापेक्षाएं थीं, क्योंकि वे उसकी निरंतरता की शर्त थीं। अब उनकी उस प्रयोजन के लिए ज़रूरत नहीं रह गई है और इस कारण अब वे नई द्रव्य पूंजी और मुद्रा वाज़ार का एक घटक बन गये हैं , यद्यपि वे किसी भी तरह तो उपलभ्य सामाजिक द्रव्य पूर्ति का अतिरिक्त तत्व हैं ( क्योंकि वे व्यवसाय के प्रारंभ में विद्यमान थे और उसके द्वारा परिचलन में डाले गये थे ) और न ही नवसंचित अपसंचय हैं। ये १०० पाउंड वास्तव में अब परिचलन से निकाल लिये गये हैं, क्योंकि वे उस पेशगी द्रव्य पूंजी का भाग हैं, जो अब उसी व्यवसाय में नियोजित नहीं की जा रही है। किंतु उन्हें निकालना केवल इसलिए संभव हुआ है कि माल पूंजी का द्रव्य में और इस द्रव्य का उत्पादक 2 11-1150