पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२६

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भूमिका २५ कहते हैं, उत्पाद के मूल्य के उस भाग के अस्तित्व का पता मार्क्स से बहुत पहले लगाया जा चुका था। यह भी बहुत कुछ सुनिश्चित रूप में कहा जा चुका था कि वेशी मूल्य श्रम की वह उपज है, जिसका उसे हथिया लेनेवाला कोई समतुल्य नहीं देता। लेकिन गाड़ी इसके आगे नहीं बढ़ी थी। कुछ लोग, जैसे कि क्लासिकी वूर्जुना अर्थशास्त्री, अधिक से अधिक इस वात की छानबीन करते थे कि उत्पादन साधनों के मालिक और मजदूर के बीच श्रम के उत्पाद का जो बंटवारा होता है, उसमें अनुपात क्या रहता है। दूसरे लोगों, जैसे कि समाजवादियों, ने देखा कि यह बंटवारा अन्यायपूर्ण है और इस अन्याय को मिटाने के लिए वे यूटोपियाई साधन तलाश करने लगे। वे सभी पहले से चले आते आर्थिक संवर्गों के कैदी बने रहे। तभी रंगमंच पर मार्क्स का प्रादुर्भाव हुआ। और उन्होंने अपने समस्त पूर्ववर्तियों से विल्कुल उलटा दृष्टिकोण अपनाया। वे लोग जिसे समाधान मानते थे, उसे उन्होंने केवल समस्या माना। वह समझ गये कि जिस बात का विवेचन करना है, वह न फ़्लोजिस्टनविहीन वायु है, न अग्नि-वायु है, वरन अक्सीजन है और यह कोई आर्थिक तथ्य का वर्णन करने अथवा इस तथ्य और शाश्वत न्याय तथा सच्ची नैतिकता के बीच अन्तर्विरोध दिखलाने की वात नहीं थी। वात थी एक ऐसे तथ्य की व्याख्या करने की, जिससे समस्त अर्थशास्त्र में आमूल परिवर्तन होना निश्चित था और जो उनके हाथ में, जो यह जानते थे कि उसे किस तरह इस्तेमाल करना चाहिए, समस्त पूंजीवादी उत्पादन को समझने की कुंजी देता था। जिस तरह लावोइज़िए ने आक्सीजन से शुरू करके उस समय फ़्लोजिस्टन रसायन में प्रचलित संवर्गों का परीक्षण किया था, उसी तरह मार्क्स ने इस तथ्य को प्रारंभ विंदु बनाकर उस समय प्रचलित सभी अर्थशास्त्रीय संवर्गों का परीक्षण किया। वेशी मूल्य क्या है, यह जानने के वास्ते मार्क्स के लिए यह जानना आवश्यक था कि मूल्य क्या है। सर्वोपरि उन्हें रिकार्डो के मूल्य सिद्धान्त की आलोचना करनी थी। इसलिए उन्होंने श्रम के मूल्य उत्पादक गुणधर्म का विश्लेषण किया। वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इसका पता लगाया कि वह कौन सा श्रम है, जो मूल्य उत्पन्न करता है, और यह काम वह क्यों और कैसे करता है। उन्होंने पता लगाया कि मूल्य इस प्रकार के घनीभूत श्रम के अलावा और कुछ नहीं है, और यही वह वात है, जो रॉदवेर्टस की समझ में मरते दम तक नहीं आयी थी। फिर मार्क्स ने द्रव्य से माल* के सम्बन्ध की छानवीन की और दिखाया कि माल में जो मूल्य का गुणधर्म निहित है, उसके कारण माल और माल विनिमय क्यों और कैसे माल और द्रव्य के विरोध को अनिवार्यतः जन्म देते हैं। इस आधार पर उन्होंने जो द्रव्य सिद्धान्त स्थापित किया, वह इस प्रकार का पहला सम्पूर्ण सिद्धान्त हैं, जिसने सर्वत्र मौन स्वीकृति प्राप्त कर ली है। द्रव्य कैसे पूंजी में रूपांतरित होता है, उन्होंने इसकी छानवीन की और यह दिखाया कि यह रूपांतरण श्रम शक्ति के क्रय-विक्रय पर आधारित है। उन्होंने श्रम की जगह श्रम शक्ति - मूल्य उत्पादक गुणधर्म - प्रतिष्ठित करके एक झटके से उस एक कठिनाई को दूर कर दिया, जो रिकार्डो धारा के पतन का कारण वनी थी। कठिनाई यह थी कि रिकार्डो के श्रम द्वारा मूल्य निर्धारण नियम से पूंजी और श्रम के परस्पर विनिमय का तालमेल बिठाना असम्भव था। स्थिर और परिवर्ती पूंजी में भेद स्थापित करने से उनके लिए वेशी मूल्य के निर्माण की प्रक्रिया के वास्तविक मार्ग का सूक्ष्मतम व्यौरे के साथ अनुरेखण करना और इस प्रकार उसकी व्याख्या करना संभव हो गया, जो एक ऐसा महाकार्य था कि 1 .

  • माल के लिए जिंस और पण्य वस्तु का भी प्रयोग किया गया है।-सं०