पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४५

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पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ , उत्पादन साधन और श्रम शक्ति जित हद तक पेशगी पूंजी मूल्य के अस्तित्व के रूप है, उस हद तक मूल्य के निर्माण में , अतः वेशी मूल्य के भी निर्माण में, वे उत्पादन प्रक्रिया के दौरान जो विभिन्न भूमिकाएं निवाहते हैं, उनके अनुसार स्थिर और परिवर्ती पूंजी के रूपों में पहचाने जाते हैं। उत्पादक पूंजी के विभिन्न घटक होने के कारण उनकी अलग-अलग पहचान इस बात से भी होती है कि उत्पादन साधन , जिन पर पूंजीपति का अधिकार होता है , उत्पादन प्रक्रिया के बाहर भी उसकी पूंजी बने रहते हैं, किन्तु श्रम शक्ति इस प्रक्रिया के भीतर ही किसी वैयक्तिक पूंजी के अस्तित्व का रूप ग्रहण करती है। श्रम शक्ति अपने विक्रेता, उजरती मजदूर के हाथों में ही विकाऊ माल बनती है, उधर वह उसके ग्राहक के हाथों में , उसके अस्थायी उपयोग का अधिकार पानेवाले पूंजीपति के हाथों में ही पूंजी का रूप धारण करती है। उत्पादन साघन उत्पादक पूंजी के भौतिक रूप तब तक नहीं बनते , उत्पादक पूंजी तब तक नहीं बनते , जब तक श्रम शक्ति , उत्पादक पूंजी के अस्तित्व का व्यक्तिगत रूप, उनमें समा- विष्ट होने के योग्य नहीं हो जाती। मनुष्य की श्रम शक्ति अपनी प्रकृति से वैसे ही पूंजी नहीं है, जैसे उत्पादन साधन भी नहीं हैं। वे किन्हीं निश्चित , ऐतिहासिक रूप से विकसित परि- स्थितियों में ही यह विशिष्ट सामाजिक स्वरूप अर्जित करते हैं, जैसे कि इस प्रकार की परिस्थितियों में ही मूल्यवान धातुओं पर द्रव्य का स्वरूप अंकित होता है अथवा द्रव्य पर द्रव्य पूंजी का स्वरूप अंकित होता है। उत्पादक पूंजी अपने कार्य सम्पन्न करते हुए अपने ही घटकों का उपभोग करती है, जिससे कि उनका अधिक मूल्यवाले उत्पादों की राशि में रूपान्तर हो जाये। चूंकि श्रम शक्ति उत्पादक पूंजी के मात्र एक अंग के रूप में काम करती है, इसलिए उत्पादक पूंजी के संघटक तत्वों के मूल्य के अलावा, उसके वेशी श्रम से उत्पाद के मूल्य में जो अतिरेक उत्पन्न होता है, वह भी पूंजी का फल होता है। श्रम शक्ति का वेशी श्रम पूंजी के लिए किया गया मुफ़्त श्रम है और इसलिए इससे पूंजीपति के लिए वेशी मूल्य का निर्माण होता है, जो एक ऐसा मूल्य है, जिसके बदले में उसे कोई समतुल्य नहीं देना होता है। इसलिए उत्पाद केवल माल नहीं होता , वरन ऐसा माल होता है, जो अपने गर्भ में वेशी मूल्य धारण किये होता है। उसका मूल्य उ+वे के वरावर है। दूसरे शब्दों में माल के उत्पादन में जो उत्पादक पूंजी उ ख़र्च हुई है, पीर उसने जिस वेशी मूल्य वे का सृजन किया है, उसका मूल्य इन दोनों के जोड़ के वरावर होता है। मान लीजिये कि यह माल १०,००० पाउंड सूत है और इतना सूत तैयार करने में ३७२ पाउंड के उत्पादन साधन और ५० पाउंड को श्रम शक्ति की खपत हुई है। कताई के दौरान कातनेवालों ने अपने श्रम से उत्पादन साधनों का ३७२ पाउंड मूल्य खपाया, जिसे उन्होंने सूत में निविष्ट कर दिया ; इसके साथ ही जो श्रम शक्ति उन्होंने ख़र्च की,. उसके अनुपात में उन्होंने नये मूल्य का सृजन भी किया , जो मान लीजिये १२८ पाउंड है। इसलिए अव १०,००० पाउंड सूत का जो मूल्य बनता है, वह. ५०० पाउंड के बरावर है। ३. तीसरी मंज़िल। मा' जो पूंजी मूल्य पहले ही वेशी मूल्य पैदा कर चुका है, उसके अस्तित्व का एक कार्यमूलक रूप है माल पूंजी [या जिंस पूंजी अथवा पण्य पूंजी। -सं०], जिसका उदय उत्पादन प्रक्रिया से ही होता है। यदि पूरे समाज में माल उत्पादन पूंजीवादी ढंग से ही होता हो, तो सभी माल