द्रव्य पूंजी का परिपथ ५१ , - - किन्तु वरावर है द्र+द्र के , ५०० पाउंड के , जिसमें ४२२ पाउंड की पेशगी पूंजी है और उसके साथ उसकी ७८ पाउंड की वृद्धि भी है। इस प्रकार द्र एक गुणात्मक सम्बन्ध भी प्रकट करता है। चूंकि यह गुणात्मक सम्बन्ध एक ही धनराशि के अंशों के बीच सम्बन्धों के रूप में विद्यमान होता है, इसलिए वह परिमाणात्मक सम्बन्ध भी होता है। पेशगी पूंजी द्र, जो एक बार फिर अपने मूल रूप (४२२ पाउंड ) में सामने आती है, सिद्धिकृत पूंजी की हैसियत से विद्यमान है। उसने स्वयं को कायम ही नहीं रखा है, वरन पूंजी के रूप में अपने को सिद्धिकृत भी किया है, क्योंकि पूंजी के रूप में वह द्र (७८ पाउंड ) से भिन्न पहचानी जाती है। इस द्र से उसका वही सम्वन्ध है जो स्वयं अपनी वृद्धि से , स्वयं अपने फल से होगा, उस बढ़ती से होगा, जिसका सृजन स्वयं उसने किया है। वह पूंजी रूप में इस कारण सिद्धिकृत हुई है कि वह उस मूल्य के रूप में सिद्धिकृत हो चुकी है, जिसने मूल्य का सृजन किया है। द्र' पूंजी सम्बन्ध के रूप में विद्यमान होता है। द्र अब केवल द्रव्य नहीं रहता , वरन द्रव्य पूंजी की भूमिका' स्पष्टतः निवाहता है, जो स्वप्रसारित मूल्य के रूप में व्यक्त होती है। इसलिए उसमें स्वप्रसार का, उसका स्वयं जो मूल्य है, उससे और बड़ा मूल्य पैदा करने का , गुण होता है। द्र' के दूसरे भाग से अपने सम्बन्ध की बदौलत द्र पूंजी बना है, जिसको द्र ने जन्म दिया है , कारण वनकर उसे कार्यरूप दिया है, जो अाधार के नाते उसका परिणाम है। इस प्रकार द्र' अपने भीतर विभेदित , कार्यात्मक ( संकल्पनात्मक ) रूप से विशिष्ट , पूंजी सम्बन्ध व्यक्त करनेवाले मूल्यों की राशि के रूप में प्रकट होता है। किन्तु यह परिणाम के रूप में ही, जिस प्रक्रिया का वह परिणाम है, उसके दखल के विना व्यक्त होता है। मूल्य के अंश स्वयं एक दूसरे से सिवा इसके गुणात्मक भिन्नता नहीं प्रकट करते कि वे अलग-अलग वस्तुओं, मूर्त पदार्थों के और इसलिए विभिन्न उपयोग रूपों और इस कारण विभिन्न मालों के मूल्यों के रूप में प्रकट होते हैं। यह अन्तर मूल्य के अंश मात्र होने के नाते स्वयं उनके साथ नहीं पैदा होता है। द्रव्य के अन्तर्गत मालों के सभी परस्पर भेद लुप्त हो जाते हैं, क्योंकि वह उन सभी का सामान्य समतुल्य रूप है। ५०० पाउंड की धनराशि में एक-एक पाउंड के समान तत्व ही होते हैं। चूंकि उसके उद्गम की मध्यवर्ती कड़ियां इस धनराशि के मात्र अस्तित्व में होने से मिट गई हैं और उत्पादन प्रक्रिया के दौरान पूंजी के विभिन्न संघटक अंशों का विशिष्ट भेद पूरी तरह मिट गया है, इसलिए अव एक ओर तो पेशगी पूंजी, ४२२ पाउंड के बरावर मूल धन , और दूसरी ओर ७८ पाउंड के अतिरिक्त मूल्य के बीच का संकल्पनात्मक भेद ही रह गया है। मान लीजिये द्र' बराबर है ११० पाउंड के, जिसमें १०० पाउंड बरावर हैं मूल धन द्र के , और १० वरावर हैं वे, वेशी मूल्य के। ११० पाउंड की धनराशि के दोनों संघटक अंगों में पूर्ण सामंजस्य है, संकल्पनात्मक भेदों का अभाव है। इस धनराशि का कोई भी १० पाउंड अंश सदा ११० पाउंड की पूरी धनराशि का १/११ ही होगा, फिर चाहे वह १०० पाउंड के अग्रिम मूल धन का १/१० हो, अथवा उसके ऊपर १० पाउंड का अतिरेक हो। इसलिए मूल धन और अतिरिक्त धन, पूंजी और वेशी राशि , सम्पूर्ण धनराशि के भिन्नांशों के रूप में व्यक्त किये जा सकते हैं। हमारे उदाहरण में मूल धन या पूंजी है १०/११, और वेशी {
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/५२
दिखावट