पूजी के रूपांतरण और उनके परिपथ . राशि है १/११। इसलिए अपनी प्रक्रिया के अन्त में सिद्धिकृत पूंजी अपनी द्रव्यरूप व्यंजना में, पूंजी सम्बन्ध की असंगत अभिव्यंजना की तरह प्रकट होती है। ठीक है कि यह बात मा (मा + मा) पर भी लागू होती है। लेकिन उसमें यह अन्तर है कि मा' जिसमें मा और मा एक ही समजातीय राशि के सानुपातिक अंश मात्र हैं, अपने उद्गम उ को दर्शाता है। वह इस उ को सीधी उपज है, किन्तु द्र' एक ऐसा रूप है, जिसका उद्भव सोधे परिचलन से हुग्रा है और इसलिए उ से द्र' का प्रत्यक्ष सम्बन्ध मिट गया है। मूल धन और वृद्धि की धनराशि का असंगत भेद , जो द्र' में , जहां तक वह द्र द्र' की गति का परिणाम व्यक्त करता है, निहित होता है, उसके फिर सक्रिय रूप से द्रव्य पूंजी का कार्य करने लगने पर और इस कारण विस्तारित प्रौद्योगिक पूंजी की द्रव्य व्यंजना के रूप में स्थिर न रहने पर लुप्त हो जाता है। द्रव्य पूंजी के परिपय की शुरुआत कभी द्र' से नहीं हो सकती ( यद्यपि द्र' अब द्र का कार्य कर रहा है)। उसकी शुरूयात केवल द्र से हो सकती है। दूसरे शब्दों में पूंजी सम्बन्ध की व्यंजना के रूप में उसकी शुरूआत कभी नहीं हो सकती, बल्कि केवल पूंजी मूल्य की पेशगी के रूप की तरह ही हो सकती है। वे को फिर पैदा करने के लिए जैसे ही पूंजी रूप में ५०० पाउंड की रकम फिर पेशगी दी जाती है, वैसे ही वह प्रस्थान का विन्दु बन जाती है, प्रत्यावर्तन का नहीं। ४२२ पाउंड की पूंजी के बदले अब ५०० पाउंड की पूंजी पेशगी दी गई है। पहले की अपेक्षा यह अधिक द्रव्य है, अधिक पूंजी मूल्य है, लेकिन उसके दोनों संघटक अंगों का परस्पर सम्बन्ध लुप्त हो गया है। दरअसल ४२२ पाउंड के बदले ५०० पाउंड की रक़म शुरू में ही पूंजी का काम कर सकती थी। द्र' की हैसियत से प्रकट होना द्रव्य पूंजी का सक्रिय कार्य नहीं है, बल्कि द्र' की हैसियत से सामने अाना मा' का कार्य है। मालों के साधारण परिचलन में भी, पहले मा१-द्र में, फिर द्र- मामें, द्र दूसरी क्रिया द्र-मार के होने तक सक्रिय रूप में नहीं आता है। द्र के रूप में वह पहली क्रिया के फलस्वरूप ही प्रकट होता है, जिसके कारण वह केवल के परिवर्तित रूप में प्रकट होता है। ठीक है कि द्र' में निहित पूंजी सम्बन्ध , पूंजी मूल्य के रूप में उसके एक अंश का मूल्य वृद्धि के रूप में उसके दूसरे अंश से सम्बन्ध यहां तक कार्यात्मक महत्व प्राप्त कर लेता है कि द्र द्र' के परिपथ के निरन्तर आवर्तन से द्र दो परिचलनों- एक पूंजी का और दूसरा वेशी मूल्य का परिचलन - में विभाजित हो जाता है। फलतः ये दोनों अंश केवल परिमाणात्मक रूप से ही नहीं, वरन गुणात्मक रूप से भी, भिन्न कार्य करते हैं। द्र के कार्य द्र के कार्यों से भिन्न हैं। किन्तु अलग से लें, तो स्वयं द्र... द्र' रूप में वह नहीं पाता, जिसका पूंजीपति उपयोग करता है, वरन स्पष्टतः केवल स्वप्रसार और संचय ही शामिल होता है, जहां तक कि यह संचय अपने पापको सबसे बढ़कर द्रव्य पूंजी की निरंतर नयी पेशगियों को प्रावधिक संवृद्धि के रूप में प्रकट करता है। यद्यपि द्र' जो द्र+द्र के बराबर है, पूंजी का असंगत रूप है, पर साय ही वह अपने तव मा
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