पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/५५

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१४ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ नहीं रहता, . माल पूंजी दोनों ही पूंजी के अस्तित्व की विधाएं हैं। एक द्रव्य रूप में पूंजी है, दूसरी माल रूप में। इसलिए जिन विशिष्ट कार्यों से उनकी भिन्नता सूचित होती है, वे द्रव्य और माल के कार्यों को भिन्नता के अलावा और कुछ नहीं हो सकते। उत्पादन की पूंजीवादी प्रक्रिया की सीधी उपज माल पूंजी उसके उद्भव को सूचक है और इसलिए रूप में वह द्रव्य पूंजी की अपेक्षा अधिक संगत और कम दुल्ह है। द्रव्य पूंजी में उत्पादन प्रक्रिया का कोई भी चिह्न शेष क्योंकि सामान्यतः मालों के सभी विशेष उपयोग रूप द्रव्य रूप में विलुप्त हो जाते हैं। इसलिए जव स्वयं द्र' माल पूंजी की हैसियत से कार्य करता है, जब वह उत्पादक प्रक्रिया को सीबी उपज, न कि इस उपज का परिवर्तित रूप होता है, तभी उसके विलक्षण रूप का लोप होता है, अर्थात स्वयं द्रव्य सामग्री के उत्पादन में उसका लोप होता है। उदाहरण के लिए, सोने के उत्पादन में मूत्र होगा : द्र. मा द्र' (द्र+द्र), जहां द्र' माल उत्पाद के रूप में सामने आयेगा, क्योंकि सोने के उत्पादन के तत्वों के लिए प्रथम द्र में, द्रव्य पूंजी में जितना सोना पेशगी दिया गया था, उसकी तुलना में उ अधिक सोना देता है। इस प्रसंग में द्र द्र' (द्र+द्र) अभिव्यंजना की असंगत प्रकृति लुप्त हो जाती है, जहां धनराशि का एक अंश उसी धनराशि के दूसरे अंश की जननी वनकर प्रकट होता है। . श्र सा समग्र रूप में परिपथ 'उसा - हम देख चुके हैं कि परिचलन प्रक्रिया में उसके पहले दौर का अन्त होने पर व्याघात उत्पन्न होता है। पहला दौर है द्र- मा< और अवरोध उत्पन्न करता है उत्पादन उ, जिसमें बाजार में खरीदे गये माल श्र और उ सा उत्पादक पूंजी के भौतिक और मूल्यगत संघटकों के रूप में खपते हैं। इस खपत को उपज एक नया माल मा' है, जिसका सार और मूल्य परिवर्तित हो चुके होते हैं। अवरुद्ध परिचलन प्रक्रिया, मा को अब मा द्र द्वारा पूरा करना होगा। परिचलन के इस दूसरे और अन्तिम दौर का वाहक है मा', जो मूल मा से सार और मूल्य को दृष्टि से भिन्न है। अतः परिचलन शृंखला इस तरह प्रकट होती है : १) द्र- मार; २) मा२-- द्र' । यहां पहले माल , के दूसरे दौर में एक अधिक मूल्य का और भिन्न उपयोग रूप का माल , मा'२, प्रक्रिया में अवरोध के समय उ के कार्य से उत्पन्न होता है, जो मा के तत्वों से, जो उत्पादक पूंजी उ के अस्तित्व के रूप हैं. मा' के उत्पादन से पैदा हुअा। तयापि पूंजी अपने जिस प्रयम रूप हमारे सामने प्रकट हुई थी (खंड १, अध्याय ४,१); अर्थात द्र मा-द्र' (विस्तारित रूप :- मा', १) द्र- माल

  • हिन्दी संस्करण : अध्याय ४।-सं०