पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/५९

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पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपय . . साय समाज . यदि उसका उपभोग अलग, अकेले किया जाता है, तो उसका मूल्य उसके उपभोग के दौरान गायत्र हो जाता है। यदि उसका उपभोग उत्पादक ढंग से किया जाये, जिससे वह परिवाहित किये जानेवाले मालों के उत्पादन की खुद एक मंजिल बन जाती है तो उसका मूल्य, अतिरिक्त मूल्य की हैसियत से स्वयं माल में स्थानान्तरित हो जाता है। इसलिए परिवहन उद्योग के लिए नूत्र यह होगा : द्र- मा <सा उ-द्र', क्योंकि जिसके लिए पैसा दिया जाता है और जिसका उपभोग किया जाता है, वह उत्पादन प्रक्रिया ही है, न कि उससे अलग और भिन्न कोई उत्पाद । इसलिए इस सूत्र का लगभग वही रूप होता है, जो वहुमूल्य धातुओं के उत्पादन के सूत्र का होता है। अन्तर केवल इतना है कि इस प्रसंग में द्र' उत्पादन प्रक्रिया के दौरान नृजित उपयोगी परिणाम का परिवर्तित रूप है और इस प्रक्रिया में उत्पादित और उससे उत्सारित सोने-चांदी का भौतिक रूप नहीं है। ग्रौद्योगिक पूंजी पूंजी के अस्तित्व का वह एकमात्र रूप है जिसमें वेशी मूल्य अथवा वेशी उत्पाद को हस्तगत करना ही पूंजी का कार्य नहीं है, वरन इसके साथ-साथ उसका निर्माण भी है। अतः उसके लिए उत्पादन का पूंजीवादी स्वरूप अनिवार्य है। उसका अस्तित्व पूंजीपतियों और उजरती मजदूरों के वर्ग विरोध का सूचक है। जिस सीमा तक वह सामाजिक उत्पादन पर नियंत्रण स्यापित कर लेती है, उस सीमा तक तकनीक और श्रम प्रक्रिया के सामाजिक गठन में और इनके के आर्थिक-ऐतिहासिक ढांचे में भी आमूल परिवर्तन या जाता है। पूंजी के अन्य प्रकार, जो ग्रौद्योगिक पूंजी से पहले सामाजिक उत्पादन की ऐसी परिस्थितियों में उदित हुए थे कि जो अतीत में विलीन हो गई हैं, या अव विलीन हो रही हैं, न केवल वे सब उसके अधीन ही हो जाते हैं और उसी के अनुरूप उनके कार्यों की क्रियाविधि भी परिवर्तित हो जाती है, बल्कि वे उसी को अपना एकमात्न अाधार बनाकर आगे बढ़ते हैं और इस अाधार के साथ ही उनका जीवन और मरण, उत्यान और पतन होता है। द्रव्य पूंजी और माल पूंजी जहां तक व्यवसाय की विशेप शाखाओं की वाहक बनकर प्रौद्योगिक पूंजी के साथ-साथ कार्य करती हैं , प्रौद्योगिक पूंजी के उन विभिन्न कार्यात्मक रूपों के अस्तित्व के ढंगों के अलावा और कुछ नहीं हैं, जिन्हें परिचलन क्षेत्र में वह कभी धारण करती है, तो कभी त्याग देती है और जिन्होंने श्रम के सामाजिक विभाजन के कारण स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त कर लिया है और जो एकांगी रूप में विकसित हुए हैं। द्र द्र' परिपय एक और माल के सामान्य परिचलन में घुल-मिल जाता है, उसी का अंश बनकर उससे व्युत्पन्न होता है और उसमें वापस लौट जाता है। दूसरी ओर वैयक्तिक पूंजीपति के लिए वह पूंजी मूल्य की स्वतंत्र गति का निर्माण करता है, जो अंशतः मालों के सामान्य परिचलन की परिधि में सम्पन्न होती है, और अंशतः उसके बाहर, लेकिन जो हमेशा अपना स्वतंत्र स्वरूप बनाये रहती है। इसका पहला कारण यह है कि उसके दो दौर, द्र-मा और मा' -द्र', जो परिचलन की परिधि में सम्पन्न होते हैं, पूंजी की गति के ही दीर हैं, इसलिए कार्यात्मक रूप में उनके निश्चित स्वरूप होते हैं। द्र मा में मा भौतिक रूप में श्रम शक्ति और उत्पादन साधनों की शक्ल में सामने आता है ; मा'-द्र' में पूंजी मूल्य का और उसके साथ वेगी मूल्य का भी सिद्धिकरण होता है। दूसरा कारण यह है कि