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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/६०

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द्रव्य पूंजी का परिपथ - 1 मा ... ... उत्पादन प्रक्रिया उ में उत्पादक उपभोग समाहित है। तीसरा कारण यह है कि द्रव्य अपने प्रारम्भ विन्दु पर लौट आता है, और इससे द्र द्र' की गति एक परिपथ वन जाती है, जो अपने में पूर्ण होता है। इसलिए प्रत्येक 'वैयक्तिक पूंजी अपने दो परिचलनार्धा , द्र मा और मा' द्र' में एक ओर मालों के सामान्य परिचलन की कर्ता होती है, जिसमें या तो वह द्रव्य अथवा माल के रूप में कार्य करती है, या शृंखलित पड़ी रहती है और इस प्रकार मालों की दुनिया में जो रूपान्तरण होते रहते हैं, उनकी सामान्य शृंखला की एक कड़ी बन जाती है। दूसरी ओर सामान्य परिचलन की परिधि में वह अपना स्वतन्त्र परिपथ पूरा करती है, जिसमें उत्पादन का क्षेत्र एक संक्रमण की मंज़िल होता है और जिसमें पूंजी अपने प्रारंभ विन्दु पर उसी रूप में लौट आती है, जिस रूप में वहां से चली थी। स्वयं अपने परिपथ के भीतर, जिसमें उत्पादन प्रक्रिया के दौरान उसका वास्तविक रूपान्तरण शामिल है, पूंजी इसके साथ ही अपने मूल्य का परिमाण भी बदल देती है। वह मात्र द्रव्य मूल्य के रूप में वापस नहीं आती, वरन संवर्धित और परिवर्धित द्रव्य मूल्य के रूप में लौटती है। अन्त में हम अन्य रूपों के साथ , जिनका विश्लेषण हम आगे करेंगे, पूंजी की वृत्तीय गति के एक विशेष रूप द्र मा' -द्र' पर विचार करेंगे। हम देखेंगे कि निम्नलिखित लक्षण इसकी विशिष्टता दर्शाते हैं : १. यह रूप द्रव्य पूंजी का परिपथ बनकर आता है क्योंकि औद्योगिक पूंजी अपने द्रव्य रूप में द्रव्य पूंजी की हैसियत से सम्पूर्ण प्रक्रिया का प्रारम्भ विन्दु और प्रत्यावर्तन विन्दु वनती है। यह सूत्र खुद यह तथ्य प्रकट करता है कि द्रव्य यहां द्रव्य के रूप में व्यय नहीं किया जाता, वरन केवल पेशगी दिया जाता है, इसलिए वह पूंजी का द्रव्य रूप मात्र है, द्रव्य पूंजी है। फिर यह सूत्र यह भी प्रकट करता है कि इस गति का निर्धारक लक्ष्य विनिमय मूल्य है, न कि उपयोग मूल्य। चूकि मूल्य का द्रव्य रूप ही वह स्वतन्त्र और साकार रूप है, जिसमें मूल्य प्रकट होता है, इसलिए परिचलन का रूप द्र ... द्र' जिसके प्रारम्भ और प्रत्यावर्तन विन्दु वास्तविक द्रव्य हैं, अत्यन्त सजीव ढंग से यह प्रकट करता है कि पूंजीवादी उत्पादन का अप्रतिरोध्य प्रेरक हेतु धनोपार्जन है। उत्पादन प्रक्रिया धनोपार्जन के उद्देश्य में मात्र एक अपरिहार्य मध्यवर्ती कड़ी बनकर एक अनिवार्य बुराई के रूप में ही सामने आती है। इसलिए जिन राष्ट्रों में पूंजीवादी उत्पादन पद्धति का चलन है, वे सभी समय-समय पर उत्पादन प्रक्रिया के बीच में आये विना ही धनोपार्जन की वेतहाशा कोशिश की पकड़ में आते रहते हैं। २. इस परिपथ में उत्पादन की मंज़िल , उ का कार्य परिचलन के दो दौरों द्र मा मा' - द्र' के वीच व्याघात बनकर आता है। अपनी वारी में यह दौर द्र - मा द्र' के साधारण परिचलन में मध्यवर्ती कड़ी बनकर पाता है। उत्पादन की प्रक्रिया परिपथ निर्मात्री प्रक्रिया के रूप में, औपचारिकतः और स्पष्टतः वह पूंजीवादी उत्पादन पद्धति में जैसी है, वैसे ही रूप में सामने आती है। वह पेशगी दिये मूल्य के प्रसार का साधन मात्र है और इसलिए स्वयं समृद्धिकरण ही उत्पादन का उद्देश्य है। ३. दौरों की इस शृंखला की शुरूपात द्र-मा होती है, इसलिए परिचलन की