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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/६३

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पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ . इसलिए द्रव्य पूंजी द्वारा निप्पन्न परिपय अत्यधिक एकांगी होता है, और इस प्रकार वह आद्योगिक पूंजी के परिपथ के प्रकट होने का सबसे स्पष्ट और अभिलक्षक रूप है। वह पूंजी, जिसका अनिवार्य प्रेरक हेतु और उद्देश्य - मूल्य का स्वविस्तार, धनोपार्जन और संचय - इस प्रकार स्पप्ट रूप में प्रकट हो जाता है ( महंगे दाम बेचने के लिए सस्ता खरीदना )। इस कारण कि पहला दौर द्र मा है, यह तथ्य भी प्रकट हो जाता है कि उत्पादक पूंजी के संघटक अंगों का उद्भव माल बाजार में होता है और पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया आम तौर से परिचलन पर, व्यापार पर निर्भर होती है। द्रव्य पूंजी का परिपथ मान्न माल उत्पादन ही नहीं है; यह स्वयं केवल परिचलन द्वारा सम्भव होता है और उसकी पूर्वापेक्षा करता है। यह वात स्पष्ट है और किसी तथ्य से नहीं, तो इसी से कि परिचलन के अन्तर्गत द्र रूप पेशगी दिये पूंजी मूल्य का प्रथम और विशुद्ध रूप वनकर प्रकट होता है और ऐसा अन्य दोनों परिपथ रूपों में नहीं होता। द्रव्य पूंजी का परिपथ हमेशा प्रौद्योगिक पूंजी की सामान्य अभिव्यंजना बना रहता है, क्योंकि उसमें पेशगी मूल्य का स्वविस्तार सदा समाहित होता है। उ .... उ में पूंजी की द्रव्य अभिव्यंजना केवल उत्पादन तत्वों की कीमत के रूप में ही और इस तरह लेखा मुद्रा में व्यक्त मूल्य रूप में ही प्रकट होती है और इसी रूप में वहीखाते में नियत की जाती है। जव यह नवसक्रिय पूंजी मुद्रा रूप में पहले पहल पेशगी दी जाती है और फिर उसी रूप में वापस ले ली जाती है, यह काम चाहे उद्योग की एक शाखा से दूसरी शाखा में जाने से होता हो, या किसी व्यवसाय से प्रौद्योगिक पूंजी के वापस लेने से होता हो, तब द्र द्र' प्रौद्योगिक पूंजी के परिपथ का एक विशेष रूप बन जाता है। इसमें पूंजी की हैसियत से उन वेशी मूल्य की कार्यशीलता शामिल है, जो पहले द्रव्य रूप में पेशगी दिया गया था। यह बात तव सर्वाधिक स्पप्ट हो जाती है, जब बेशी मूल्य उस व्यवसाय से भिन्न , जहां उसकी उत्पत्ति हुई थी, किसी दूसरे व्यवसाय में कार्यशील होता है । सम्भव है कि द्र द्र' किसी पूंजी का पहला परिपथ हो ; सम्भव है कि वह उसका अन्तिम परिपथ हो ; हो सकता है कि उसे समग्र सामाजिक पूंजी का रूप माना जाये। वह पूंजी का ऐसा रूप है, जिसे व्यवसाय में नये सिरे से लगाया गया है, फिर चाहे उसे अभी हाल में द्रव्य रूप में संचित पूंजी की हैसियत से लगाया जाये या किसी पुरानी पूंजी की हैसियत से , जिसे उद्योग की एक शाखा से दूसरी में स्थानान्तरित करने के लिए पूर्णतः द्रव्य में रूपान्तरित किया गया है। ऐसा रूप होने के कारण , जो सभी परिपथों में सदैव समाहित होता है , द्रव्य पूंजी यह परिपथ निश्चित रूप से पूंजी के केवल उसी अंश के लिए पूरा करती है, जो वेशी मूल्य , अर्थात परिवर्ती पूंजी पैदा करता है। पेशगी मजदूरी देने का साधारण रूप है द्रव्य में अदायगी। इस प्रक्रिया को अपेक्षाकृत थोड़ी-थोड़ी अवधि के वाद नये सिरे से चाल करना होता है, क्योंकि मजदूर को तो रोज़ कुत्रां खोदना और रोज़ पानी पीना होता है। इसलिए पूंजीपति हमेशा ही मजदूर के सामने द्रव्य पूंजीपति की हैसियत से पायेगा और उसकी पूंजी द्रव्य पूंजी वनकर आयेगी। यहां वैसा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लेखा-संतुलन सम्भव नहीं है, जैसा हम उत्पादन साधनों की खरीदारी और उत्पादित माल की विक्री में देखते हैं ( जिससे द्रव्य पूंजी का अधिकांश दरअसल माल के रूप में ही सामने आता है तथा द्रव्य केवल लेखा मुद्रा के रूप में और अन्त में लेखा-संतुलन के दौरान ही नकदी के रूप में )। दूसरी ओर परिवर्ती पूंजी से 1 .