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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/६४

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द्रव्य पूंजी का परिपथ 1 उत्पन्न होनेवाले वेशी मूल्य का एक अंश पूंजीपति अपने व्यक्तिगत उपभोग पर खर्च करता है , जिसका सम्बन्ध खुदरा व्यापार से होता है और रास्ता चाहे जितना चवकरदार हो, वेशी मूल्य का यह अंग हमेशा नक़द, वेशी मूल्य के द्रव्य रूप में ख़र्च किया जाता है। इससे कुछ नहीं आता-जाता कि वेशी मूल्य का यह अंश कितना बड़ा या छोटा है। परिवर्ती पूंजी हमेशा नये सिरे से द्रव्य पूंजी वनकर प्रकट होती है, जिसे मज़दूरी में लगाया जाता है (द्र - श्र) और द्र वेशी मूल्य वनकर आता है, जिसे पूंजीपति के व्यक्तिगत उपभोग की कीमत चुकाने पर व्यय किया जाता है। इसलिए द्र पेशगी दिये परिवर्ती पूंजी मूल्य और उसकी वृद्धि द्र को द्रव्य रूप में व्यय किये जाने के लिए अनिवार्यतः इसी रूप में रखा जाता है। द्र-मा मा' - द्र' का सूत्र अपने परिणाम द्र' =द्र+द्र के साथ वाह्य रूप में भ्रामक है, उसका यह स्वरूप प्रवंचना है। इसका कारण है पेशगी दिये और स्वविस्तारित मूल्य का अपने समतुल्य - द्रव्य - में विद्यमान होना। यहां ज़ोर मूल्य के स्वविस्तार पर नहीं, वरन इस प्रक्रिया के द्रव्य रूप पर, इस तथ्य पर है कि मूलतः परिचलन को द्रव्य रूप में जितना मूल्य पेशगी दिया गया था , अन्त में उससे अधिक वापस लिया जाता है। इसलिए ज़ोर इस बात पर है कि पूंजीपति का सोना-चांदी दिन दूना और रात चौगुना बढ़ता जाता है। तथाकथित मुद्रा व्यवस्था द्र- मा-द्र' के असंगत रूप की अभिव्यंजना मात्र है। वह ऐसी गति है कि जो केवल परिचलन में सम्पन्न होती है और इसलिए द्र मा और मा द्रा की दोनों क्रियाओं की व्याख्या वह सिवा इसके और किसी प्रकार कर ही नहीं सकती कि दूसरी क्रिया में मा की विक्री अपने मूल्य से ऊपर है और इसलिए परिचलन में मा के क्रय में जितना धन डाला गया था, उससे ज्यादा अव निकाला जा रहा है। दूसरी ओर एकान्तिक रूप में नियत द्र-मा मा' -द्र' अधिक विकसित वाणिज्य प्रणाली का आधार बन जाता है, जहां मालों का परिचलन ही नहीं, वरन उनका उत्पादन भी आवश्यक तत्व बनकर सामने आता है। द्र-मा मा' -द्र' सूत्र का भ्रामक स्वरूप और उसी के अनुरूप भ्रामक व्याख्या वहां विद्यमान होगी, जहां भी इस रूप को एक वार घटित होनेवाला , न कि प्रवहमान और निरन्तर पुनर्नवीन होनेवाला माना जायेगा। इसलिए जहां भी यह रूप परिपथ के अनेक रूपों में एक न माना जाकर उसका एकमात्र रूप माना जायेगा, वहां भ्रम उत्पन्न होगा। किन्तु वह स्वयं दूसरे रूपों की ओर इंगित करता है। पहली बात तो यही है कि इस समग्र परिपथ का पूर्वाधार उत्पादन प्रक्रिया का पूंजी- वादी स्वरूप है और इसलिए इस प्रक्रिया को उसके द्वारा लाई हुई आधारभूत विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों के साथ देखता है। द्र-मा=द्र मा < किन्तु द्र -श्र के लिए उ सा; माना जायेगा कि उजरती मजदूर पहले से मौजूद है और इसलिए उत्पादन साधन उत्पादक पूंजी के अंश हैं। अतएव यह माना जायेगा कि श्रम और स्वविस्तार की प्रक्रिया, की प्रक्रिया , पूंजी का कार्य है। दूसरे, यदि द्र द्र' की प्रावृत्ति हो, तो द्रव्य रूप में वापसी वैसे ही क्षणभंगुर जान पड़ती है, जैसे पहली मंजिल में द्रव्य रूप जान पड़ता था। उ के वास्ते जगह खाली करने के . श्र उत्पादन