पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/८७

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अध्याय ३ माल पूंजी का परिपथ . माल माल पूंजी के परिपथ का सामान्य सूत्र है : मा-द्र'- मा...उ... .मा' मा' दो पूर्व परिपथों के उत्पाद ही नहीं, उनके पूर्वाधार की हैसियत से भी प्रकट होता है। कारण यह है कि जो एक पूंजी के लिए द्र- मा है, वही दूसरी पूंजी के लिए मा-द्र' है, क्योंकि उत्पादन साधनों का कम से कम एक भाग स्वयं , अपने परिपथों का निर्माण करनेवाली अलग-अलग पूंजियों का माल उत्पाद है। प्रस्तुत प्रसंग में, उदाहरण के लिए, कोयला, मशीनें, आदि खान के मालिक की, पूंजीवादी मशीन निर्माता , आदि पूंजी हैं। इसके अलावा हम अध्याय १, परिच्छेद ४ में दिखा चुके हैं कि द्र द्र' की पहली प्रावृत्ति के समय ही न केवल उ उ परिपथ की , वरन मा ... मा परिपथ की भी- द्रव्य पूंजी के इस दूसरे परिपथ के पूरा होने के पहले - पूर्वकल्पना की जाती है। यदि पुनरुत्पादन विस्तृत पैमाने पर हो, तो अन्तिम मा प्रारम्भिक मा से बड़ा होता है और इसलिए उसे यहां मा" कहना चाहिए। पहले दो रूपों और तीसरे रूप में अन्तर इस प्रकार है : पहले , इस प्रसंग में सम्पूर्ण परि- चलन अपने दो परस्पर विरोधी दौरों के साथ परिपथ को शुरू करता है, जब कि रूप १ में उत्पादन प्रक्रिया द्वारा परिचलन अन्तरायित होता है और रूप २ में अपने दो परस्पर पूरक दौरों के साथ संपूर्ण परिचलन मान्न पुनरुत्पादन प्रक्रिया सम्पन्न करने के साधन रूप होता है और इसलिए वह उ ... उ के वीच मध्यस्थता करनेवाली गति होता है। द्र के प्रसंग में परिचलन का रूप होता है : द्र-मा ... मा-द्र' = द्र-मा-द्र। उ के प्रसंग में इसका उलटा रूप होता है : मा’- द्रा द्र- मा मा-द्र-मा। मा'-मा' के प्रसंग में भी उसका यही वादवाला रूप होता है। दूसरे, जब १ और २ परिपयों की प्रावृत्ति होती है, तब भले ही द्र' और उ' नवीकृत परिपय के प्रारम्भ बिन्दु हों, जिस रूप में दें और उ' उत्पन्न हुए हैं, वह विलुप्त हो जाता प्रकट उ...