पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/९४

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माल पूंजी का परिपथः ६३ 1

३ में स्वविस्तारित पूंजी सम्पूर्ण माल उत्पाद के आकार में प्रारम्भ विन्दु बनती है और उसका रूप गतिमान पूंजी का , माल पूंजी का होता है। जब तक द्रव्य में उसका रूपान्तरण नहीं हो जाता, तब तक यह गति पूंजी की गति और आय की गति में विभक्त नहीं होती। इस रूप में पूंजी के परिपथ में समग्र सामाजिक उत्पाद का वितरण तथा प्रत्येक पृथक माल पूंजी के लिए उत्पाद का एक और व्यक्तिगत उपभोग निधि में और दूसरी ओर पुनरुत्पादन निधि में विशेष वितरण भी सम्मिलित होता है। द्र' में परिपथ का सम्भाव्य परिवर्धन समाहित होता है, जो नवीकृत परिपथ में प्रवेश करनेवाले द्र के परिमाण पर निर्भर करता है। उ... उ में उ द्वारा उसी मूल्य अथवा सम्भवतः उससे भी कम मूल्य के साथ नया परिपथ शुरू किया जा सकता है। फिर भी वह विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन का सूचक वन सकता है, उदाहरण के लिए, जव श्रम की वर्धित उत्पादिता के कारण मालों के कुछ तत्व और सस्ते हो जाते हैं। विलोमतः, वह उत्पादक पूंजी, जो अपने मूल्य में परिवर्धित हो चुकी है, विपरीत प्रसंग में, भौतिक रूप में संकुचित पैमाने पर पुनरुत्पादन को सूचित कर. सकती है, उदाहरण के लिए, जव उत्पादन के तत्व महंगे हो गये हों। यही बात मा' : मा' के लिए सही है। मा मा' में माल रूप में पूंजी उत्पादन का पूर्वाधार है। इस परिपथ के भीतर वह दूसरे मा में पूर्वाधार की तरह पुनः प्रकट होती है। यदि यह मा अभी तक उत्पादित अथवा पुनरुत्पादित न हुआ हो, तो परिपथ अवरुद्ध हो जाता है। इस मा के अधिकांश भाग का किसी अन्य प्रौद्योगिक पूंजी के मा' की तरह पुनरुत्पादन आवश्यक होता है। इस परिपथ में मा' गति का प्रारम्भ विन्दु, संक्रमण विन्दु और समापन विन्दु होता है, अतः वह वहां सदैव विद्यमान रहता है। पुनरुत्पादन प्रक्रिया की वह एक स्थाई शर्त है। रूप १ और २ से मा' मा' की भिन्नता को एक और लक्षण भी दर्शाता है। तीनों परिपथों में यह सामान्यता है कि पूंजी अपना वृत्तीय पथ उसी रूप में समाप्त करती है , जिसमें वह उसे प्रारम्भ करती है और इस प्रकार स्वयं को उस प्रारम्भिक रूप में पाती है, जिसमें वह नये सिरे से परिपथ शुरू करती है। द्रं , उ अथवा मा' का प्रारम्भिक रूप सदैव वह होता है, जिसमें पूंजी मूल्य (रूप ३ में अपने वेशी मूल्य द्वारा परिवर्धित ) पेशगी दिया जाता है। दूसरे शब्दों में परिपथ के संदर्भ में यह उसका मूल रूप है। समापन रूप, द्र', उ अथवा मा' सदैव उस कार्यशील रूप का परिवर्तित रूप होता है , जो परिपथ में पहले आया था और जो मूल रूप नहीं है। इस प्रकार रूप १ में द्र' मा' का परिवर्तित रूप है, रूप २ में अन्तिम उद्र का परिवर्तित रूप है (१ तथा २ रूपों में यह रूपान्तरण माल परिचलन की सादी क्रिया द्वारा, माल तथा द्रव्य के औपचारिक स्थान परिवर्तन द्वारा सम्पन्न होता है)। रूप ३ में मा' उत्पादक पूंजी उ का परिवर्तित रूप है। किन्तु यहां , रूप ३ में , रूपान्तरण का सम्बन्ध पहले तो पूंजी के कार्यशील रूप से ही नहीं, वरन उसके मूल्य के परिमाण से भी है; और दूसरे, रूपान्तरण परिचलन प्रक्रिया से सम्बद्ध केवल औपचारिक स्थान परिवर्तन का ही नहीं, . 1 वरन