पृष्ठ:कालिदास.djvu/११८

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कालिदास ।]

नैतिक अवस्या का चित्र पाया जाता है। उसमें शारीरिक और मानसिक, दोनों, शक्तियों का पूर्ण विकास दिलाया गया है। साथ ही साथ उन शक्तियों को, संभार की शुद्धता और श्रेष्ठ धार्मिक जीयन के कार्यों का सहायक बनाने की आवश्यकता भी यतताई गई है । तथापि यात्मीकि ने निजाम- धर्म की उपदेश कहीं भी नहीं किया। इस धमें की शिक्षा महाभारत ही में पूरी तरह दी गई है। पाल्मीकि के पात्र सारे काम मानसिक उत्तेजना से करते है, दोषारोपण की पुद्धि से नहीं। धर्म की उत्त जना ही एम से सब काम फराती है और धर्म की उत्त जना रायण को अटाचार में प्रवृत्त करती है। पाल्मीकि ने पुराने धार्मिक नियमों पोदी सर्वत्र फैलाने की पेश की है। उन नियमों में अपनी ओर से कुछ फेरफार करना उन्होंने भन्दा मही समझा। मासे पारमीकि का काय उस समय की मैतिक अयम्मा का भ्रष्ट उपाहरण माना जाता है, जिस समय हियुमो मे धीरताका पूर्ण विकास था।

ग्यास पात्मालिकेमार है। उस समय देश में और भी अधिर. अशान्ति फलोधी । उप प्रयास मसघामयाली अनेक कगाएनने में मानी। पनि सा हो तो यह मारय हो मान नागरंगा पारमाधिमारणं के अनुसार, 'गाप्रावधान कर

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