पृष्ठ:कालिदास.djvu/११७

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[कालिदास के समय का भारत।

पातो की तरह, इस पर भी चुप हो रहते। परन्तु यह यात उन्दे पंसन्द नहीं आई। इसीसे उन्होंने पहुत पुराने जमाने के एक भनुकरणीय, उषत और धार्मिक समाज की शरण ली। इससे उनको सभ्यता का एक यहुत पड़ा चित्र बनाने के लिए पूरा मसाला मिल गया। उन्होंने अपने अन्य में विलक्षण कवि-कौशल से दो प्रकार के जन-समाज के चित्र पनाये हैं। दोनों ही चित्र अपनी अपनी पूर्णता की परम सीमा तक पहुँचाये गये है। एक चित्र तो एक ऐसे आदर्श- समाज का है जिसमें समाज को उन्नत करने और उसका गौरव पढ़ानेवाली सामग्रियों का बहुत ही उत्तम रीति से उपयोग किया जाता है। दूसरा वित्र एक ऐसे अमानुपिक समाज का है जहाँ यल, अत्याचार, लोभ, अभिमान, इच्छा- स्वातन्त्र प्रादि का ही साम्राज्य है। कषि ने राम और रावण को इन्हीं दोनों तरह के समाजों के आदर्श पुरुष मान- कर उनके युद्ध का परिणाम दिखाया है। रामायण की रचना इसी तरह की है। याल्मीकि का यह काव्य बहुत ही अच्छा है । कविता के श्रेष्ठ गुणों से यह युक्त है। यह बात सच है कि सब लोग इसके यथार्थ प्राशय को नहीं समझ सकते। किन्तु जिन्होंने इसका तत्य समझा है घे संसार के अन्य किसी काव्य को इससे ऊँचा स्थान फमी देने के नहीं।

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तात्पर्य यह किवाल्मीकि रामायण में एक विशुद्ध

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