कासिम
पम्मपर्म की रएि से की और न ही उसन गति से उमका पार किया। उन्हीं नियमों के मापार पर उन्होंने अंग पजे नियम पनाये। राज-शासन भीर ममान, दोगों को, उन्होंने धंध मादर तक पहुंचाया। उन्होंने एक एक करके समी विषयों का संस्कार नये ढंग से किया। उनकी पिचार-रष्टि पड़ी सूक्ष्म पी। उसकीयदौलत उन्होंने सभी विषयों का संस्कार किया। उन्दोंने अपने समय की समता को दम लोगों के सामने आने की तरह रख दिया है। उस सभ्यता में नैतिक और भौतिक दोनों ही अयस्यमों पर धुद्धि-पल का पूरा प्रकाश दिगाई देता है। महाभारत फे सय पार्यों में, सप अगह, युद्धि-यल की ही प्रधानता देखी जाती है। ये लोग प्रत्येक काम मन की प्रबल उत्तेजना से करते हैं। इसीसे उनके कार्य-कलाप के चिह्न, पत्थर पर लकीर की तरह, साफ़ नज़र आते हैं। इस प्रथल मानसिक शक्ति का माहात्म्य महाभारत में सय जगह उसी तरह पाया जाता है जिस तरह रामायण में धर्म और अधर्म की उ7- जना का माहात्म्य । महाभारत के सय पात्रों को कवि ने भिन्न भिन्न प्रकार की मानसिक उत्तेजना के बल से ही सभ्यता की राह पर पहुँचाया है। इसीसे उसमें रामायण को अपेक्षा युद्ध की यात अधिक देखने में भाती है, शक्ति की
याते पहुत ही कम पाई जाती है।