पृष्ठ:कालिदास.djvu/१२१

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[ कालिदास के समय का भारत ।

न्यास के कोई हजार घर्ष याद कालिदास उत्पल हुए। उन्होंने भी अपने समय की सामाजिक अवस्था के पहुत ही अच्छे चित्र खींचे हैं। पारमीकि और व्यास के समय के बीच जितनी घटनायें हुई थी उनसे कहीं अधिक घटनायें कालिदास और व्यास के समय के बीच में हुई। कालिदास का प्रादुभांच ऐसे समय में एत्रा था जब देश मै सय जगह पैशाचिक भाष फैला था और जब उसे दवाने के लिए पौद्धमत को सृष्टि हो चुकी थी। सार्वजनिक कार्यो में सर्वत्र शिथिलता दिखाई देती थी। लोग प्रत्येक विषय के नियम पनाने की धुन में थे। दर्शन-शास्त्र नियमबद्ध हुमा, धर्म-शान और नीति शास्त्र के नियम बने, विद्या और ज्ञान के जितने विषय हैं सभी नियम-पर हुए। इस समय एक मोर तो पड़े पड़े विद्वानों, नीति-शानियों, मैयायिकों, और दार्शनिक तत्व येतामों के प्रत्य यन रहे थे। दूसरी ओर जातीय उत्साह और सांसारिक जीवन के सौन्दर्य के विषय में कारों की रचना हो रही थी। लोगों के जीवन में विलासिता घुस गई थी। ये जीयन और सौन्दर्य ही को सप पर समझने लगे घे-उनका उन्हें पड़ा अभिमान था। चित्रकारी, गृहनिर्माण-विधा, सहीत, माटप-कला, धनस्पति-शाल, भादि विलासिता की सूचक

सभी विधायें उन्नति की चरम सीमा तक पांचाई गई थी।

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