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पृष्ठ:कालिदास.djvu/१३१

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[ कालिदास के समय का भारत ।

इस धर्म में ईश्वर से वैसा ही प्रेम करने की शिक्षा मनुष्य को दी गई है जैसा प्रेम प्रेयसी को अपने प्रेमी से होता है। शैष धर्म का तबतक प्रादुर्भाव न दुना था। किन्तु फालि- दास के फाव्यों से पता लगता है कि बुद्धिमानों के मानस- क्षेत्र में उसका अंकुर उग चुका था।

कालिदास का कुमार-सम्भव बहुत ही उत्तम काव्य है। उसमें शिव और पार्वती के विवाह की कथा है। यास्तव में फयि ने उसमें पुरुप श्रीर प्रकृति के संयोग का चित्र दिखाया है। इस काव्य में फदि ने यह भी स्पष्टता- पूर्पक दिखाया है कि जीवाना किस तरह ईश्वर की खोज करता है और कैसे उसे प्राप्त करता है। इस तरह कवि ने धर्म-सम्बन्धी दो बड़े भारी माध्यात्मिक और दार्शनिक तत्वों को, स्त्री-पुरुप के चरित्र के व्याज से. प्रकट कर दिखाया है। सांसारिक विपयो के वर्णन का यह बहुत ही अच्छा दंग है। इस पर विचार करने से मालूम होता है कि प्लय-धर्म-सम्पन्धी पुराणों में जिस सिद्धान्त का पीछे से विकाश हुधा उसे कालिदास ने पहले ही मालका दिया था। (मीसे पहले ऋदा जा चुका है कि कालिदास, कभी भी, पर्तमान समय की घटना का वर्णन करते समय, उसके भावी परिणाम को भी भलफा दिया करते थे। इस

'पात से यह भी समझा जा सकता है कि सांसारिक विषयों

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