पृष्ठ:कालिदास.djvu/१४

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कालिदास।]
 

कि छठे शतक में शक तो नही, हण बलवत्त इस देश से निकाले गये थे। पर इनको निकालनेवाले राजा का नाम था यशोधा (विष्णु-यन), विप्रमादित्य नहीं। इन सय का निष्कर्ष यह निकला कि छठी शताब्दी में विक्रमादित्य कोई था ही नहीं।

इसके बाद वूलर, पीटर्सन और फ्लीट आदि साहयों ने, कुछ खुदे हुए लेखों के श्राधार पर, यह राय दी कि विक्रम संवत् ५४४ ईसवी में नहीं प्रारम्म हुआ था। यह उसके सौ वर्ष से भी अधिक पहले जारी था। पर उस समय उसका नाम था मालव-संवत्। कोई ८०० ईसवी के करीव इसी मालव-संवत् का नाम विक्रम- संवत् हो गया। उसका नाम मालव-संवत् पहले क्यों पड़ा ? फिर क्यों विक्रम संवत् नाम हुमा ? किसने मालव-संवत् चलाया ? इन बातों पर यहस करने की यहाँ जरूरत नहीं, यहाँ इस उरलेख से सिर्फ इतना ही मततर है कि छठे शतक में विक्रमादित्य नामक राजा न थे, और उनका तथा कालिदास का अखण्ड सम्बन्ध होने के कारण, कालिदास भी उस समय न थे। श्रच्छा, तो चित्रमादित्य धे कर ? "The Great King Vikramaditya 'vanishes from the historical ground of the 6th century into the realm of myths ये छठे

शतक की ऐतिहासिक भूमि से उड़कर पौराणिक किस्से-