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पृष्ठ:कालिदास.djvu/१३

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[कालिदाम का प्राविधि-काल । यह जन-श्रुति इस देश में हजारों पों से घसी धानी है कि कालिदास, विक्रमादित्य के समा-पण्डित थे। विममादित्य का संयत् प्रचलित है। इस संपत् का प्रारम्भ ईसपी सन् के ५७ वर्ष पहले, मितम्यर की १८ तारीख, बृहस्पतिवार, को हुधा था। पर ईसा के पहले सचमुच ही कोई विक्रमादित्य इस देश में था या नहीं, इस- फा ऐतिहासिक प्रमाण चाहिए कोई शिला-लेस्त्र, कोई मान-पत्र, कोई शासन-पत्र । सो कुछ नहीं मिला। पाश्चात्य विद्वानों का पहले खयाल था कि संस्कृत की विशेष उन्नति ईसा पोरठे शतक में हुई। अतएय उन्होंने अनुमान किया कि. कालिदास के रघुवंश और शकुन्तला प्रादि अन्य उसी समय पने होंगे। अर्थात् कालिदास का स्थिति-काल घरी शुताली दुमा। अय रक्षा विशमादित्य, सो उस समय का भी मेल कालिदास के समय से मिल गया। फर्गुसन साहय ने लिखा कि विक्रमादित्य नाम के एक राजाने, ५४४ सायी में, शकों को परास्त किया। इस घटना की यादगार में उसीने छठी शताब्दी में अपने नाम का विकम-संवत् चलाया। परन्तु उस समय से छ: सौ वर्ष पहले से !!! श्रर्थात् विममादित्य पर एक नई घटना को छः सौधर्ष की पुरानी यतलाने का आरोप लगाया गया। इस धारोप में इस देश के प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डाक्टर भाऊ दाजी भी शायद शामिल थे। पर और जाँच करने पर मालूम हुश्री