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कालिदास । ]
यह बात भी उनकी पूर्वोक्त उक्ति से सिद्ध है। ये फा सिद्धान्त है कि कम्मों या संस्कारों का पीज: ‘होता। कालिदास ने-
(१) प्रपेदिरे यातनामविशा।
और
(२) भावस्थिराणि जननान्तरसौहदानि । कहकर इस सिद्धान्त का भी स्वीकार किर सांख्य-शास्त्र-सम्बन्धिती उनकी अभिशता के दर्शक श्लोक का अवतरण किसी पिछले लेख में पहले ही जा चुका है।
ज्योतिष का ज्ञान ।
इसमें तो कुछ भी सन्देह नहीं कि फालि
ज्योतिष शास्त्र के पगिडत थे। इस बात के कितने ही म
उनके मन्यों में पाये जाने हैं। उजयिनी पहुत फाल
ज्योतिर्विद्या का केन्द्र थी। मिस समय इस शास्त्र की।
ही अनितारया थी उसी समय, प्रथया उसके पुत्र
आगे-पीये, कालिदास का प्रादुमयमा। सनपप ज्या
से उनका परिचय होगा यहुत ही स्वाभाविक था-
(१) रहिमपा परित्य न कामः पुरा शुशमिश्नपाण।