पृष्ठ:कालिदास.djvu/१४७

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[कालिदास को विद्धता।

(३) मैत्रे मुहूर्त शशलान्छनेन योगं गतासूत्तरफल्गुनीषु ।

(४) हिमनिर्मुक्तयोोंगे चित्राचन्द्रमसोरिख ।

(५) तिथौ च जामिनगुणान्वितायाम् ।

इत्यादि ऐसी कितनी ही उक्तियों कालिदास के प्रन्यों में विद्यमान हैं जो उनकी ज्योतिष शास्त्रज्ञता के कभी नए न होनेवाले सर्टिफिकेट है।

वैध विधा से परिचीत ।


कालिदास चाहे अनुभवशाली वैद्य न रहे हो, चाहे उन्होंने अायुर्वेद का विधिपूर्वक अभ्यास न किया हो; परन्तु इस शास्त्र से भी उनका थोड़ा बहुत परिचय मघश्य था। और सभी सत्कवियों का परिचय प्रधान प्रधान शास्त्रों से अवश्य ही होना चाहिए । विना सर्वशाखा हुए-बिना प्रधान प्रधान शास्त्रों का थोड़ा यहुन मान प्राप्त किये-कवियों की कविता सर्वमान्य नहीं हो सकती। महाधियों के लिए तो इस तरह के शान को बड़ी ही आवश्यकता होती है। क्षेमेन्द्र ने इस विषय में जो कुछ कहा है बहुत ठीक कहा है। पैध-विद्या के तत्वों से कालिदास अनमिसन थे। कुमार- सम्भव के दूसरे सर्ग में तारक के दौरात्म्य और पराकम आदि का वर्णन है। उस प्रसा में कालिदास ने लिम्ना है--

तस्मिन्नुपायाः सर्वे मः करे प्रतिहतक्रियाः ।

बीयं वन्यौपानी विकारे सानिपातिक

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