पृष्ठ:कालिदास.djvu/१६

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फालिदास । पाश्चात्य परिडतों ने भी यह अनुमान किया कि कालिदाम पाँच शतक के श्रारम्भ में, अर्थात् यत्समाह से कोई ५० घर्ष पहले, विधमान थे। . इसके साथ ही साहब की यह भी राय है कि गिरिनार में, ईसा की दूसरी शताब्दी के जो खुद हुए लेख, गद्य में मिले हैं उनसे सिद्ध होता है कि उस समय भी अच्छी कविता का प्रचार था। अर्थात् जिस ढङ्ग की कविता कालिदास, भवभूति श्रादि की है उसी ढग की कविता दूसरे शतक में भी होती थी। यही नहीं, किन्तु ईसा के पहले शतक में भी नालङ्कारिक कविता होती थी। अश्वघोष नामक चौद्ध भिक्षु ८० ईसवी में हुआ है। उसने युद्ध- चरित नामक काय लिखा है। यह अच्छा काव्य है। काव्य ही नहीं, महाकाव्य है। खुद उसीमें लिखा है कि यह महाकाव्य है। तिस पर भी मेकडानल साहब कालिदास की स्थिति पाँचवें शतक के प्रारम्भ में ही अनुमान करते हैं । अधिक से अधिक आप इतना ही कहते हैं कि इस स्थिति- निर्णय में अब भी शायद सौ दो सौ वर्षों का फरक हो, ("And is even now doublful to the extent of a century or two".) . अय जो हम बुद्ध-चरित को देखते हैं तो उसमें फालिदास के कार्यो की छाया एक नहीं, अनेक जगहों पर मिलती है। कुछ नमूने नीचे देखिए-