पृष्ठ:कालिदास.djvu/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ फ.लिदास के मेघदूत का रहस्य ।

मही चलता। न यह गिर सकती है, न घिस सकती है, म उसका कोई अंश दृट ही सकता है। ‘काल पाकर और मारते जीर्ण होकर भूमिमात् हो जाती है, पर यह अद्भुत भवन न कभी जीर्ण होगा और न कमी इसका पंस'ही होगा। प्रत्युत रसकी रमणीयता वृद्धि की ही आशा है। इसे भजर भी कह सकते हैं और अमर भी।

अलकाधिपति कुवेर के कर्मचारी एक यक्ष ने कुछ अपराध किया। उसे कुबेर ने, एक घर्ष सक, अपनी प्रियतमा पती से दूर जाकर रहने का दण्ड दिया। पत ने इस दरार को धुपचाप स्वीकार कर लिया। अलका छोड़कर पह मध्य प्रदेश के रामगिरि नामक पर्यत पर पाया। यही उसने एक वर्ष पिताने का निधप किया। आगद का महीना माने पर बादल आकाश में छा गये। उन्हें देखकर यक्ष का पती-वियोग-दुःख दूना हो गया। यह अपने को भूल सा गया। इसी दशा में उस विरही यक्ष ने मेघ को दूत कल्पना करके, अपनी पुशल-यातर्ता अपनी पी के पास पहुंचानी पाही। पहले कुछ थोड़ी सी भूमिका याँधकर उसने मेघ से अलका जाने का मार्ग बताया, फिर मईसा कहा। कालियास मे मेयदूत मैं हन्दी यातों का पर्णन किया है।

मेघदूत की कविता सोसम कविता की एकत

होमण्या माना है। उसे यही मच्छी तरह समझ सकता

१६७