मिलती। कपिलय को कपि के काम्य-मर्म को जान सकते हैं ये मी एक प्रकार के कवि हैं। किसी कवि काम्य के प्राकलन करनेवाले कालय पदि की कपि के दय सय मा तो फिर परा कहना है। इस दण माकलनकर्ता को पदी मानद मिलेगा जो फरि को उ करिता के निम्मारा करने से मिला होगा। जिस फरिता जितना ही अधिक प्रानन्द मिले उसे उतनी ही अधिक ऊँ दरजे की समझना चाहिए। इसी तह, मिस करिव समालोचक को किसी काम्य के पाठ या रसास्वादन र जितना ही अधिक मानन्द मिले उसे उतना ही अधिक उस फयिता का मर्म जाननेयाला समझना चाहिए। इन बातं को ध्यान में रखकर, माइए, देखें, कालिदास ने इस कार में पया क्या करामाते दिखाई है। पर इससे कहीं यह न समझ लीजिएगा कि हम कवि या समालोचक होने का.वाया करते है। हम तो ऐसे महानुभावों के चरणों की रज भी नहीं। तथापि-
सः पवारपारमसमें पतरिया
इस कविता का विषय-यहाँ तक कि इसका नाम पी-कालिदास के परपती कवियों को इतना पसन्द माया
कि इसकी बाया पर हंसत, पात, पवनत, और