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लिदास ।
कामातुर होत हैं सदा मति-
चेत और अचेत माहि भेद कहाँ
उस समय यक्ष को केवल अ ख़याल था। यही उसके तन और मन अन्य सांसारिक ज्ञान उसके चित्त से पकन गया था। यह एक प्रकार की समाधि में इस समाधिस्य अवस्था में यदि उसने निजी कल्पना किया तो कोई पेसी पात नहीं की जो या सके। कवि का काम शानिक के काम वैज्ञानिक प्रत्येक पदार्थ को उसके यथार्थ रूप में परन्तु यदि कवि पेसा करे तो उसकी कयिता क प्रायः सारा का सारा, विनष्ट हो जाप। कपि को भर या कल्पक म समझना चाहिए । उसको मृधि ही दूर यह निर्धाय को सजीप और सजीय को निर फर है। अतएप मध्य-मारत से हिमालय की तरफ जान पन-प्रेरित मेष को मन्देश-थाहक बनाना जरा भीम 'स्य-परांक माही। फिर, एक पान और भी है। कषि यह आराय नहीं कि मंघ सचमुच दीपका गणेश जाय। उमने हम पक्षाने विमयुत. परकी भरपाक पर्णन मार दिया और उस