पृष्ठ:कालिदास.djvu/१९

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[कालिदास का प्राविर्भाव-काल । पर कालिदास की कविता का संस्कार ५० वर्ष के बाद हुमा श्राप यतलाते हैं, तय सुदूर पश्चिम-प्रान्त के अश्वघोष को कालिदास की कविता का परिचय होने में १०० घर्ष यदि लगने हो तो कुछ यसम्भव नहीं। श्राप शायद यह कहें कि इसका क्या प्रमाण है कि अश्ययोप ही ने कालिदास की छाया ली। सम्भव है, फालिदास अश्वयोर के बाद हुए हों और उन्होंने अश्वघोष की छाया ली हो। उत्तर में प्रार्थना है कि वत्सभदि को बार कालिदास की करिता का अनुसरण करनेवाला पयों कहते हैं ? कालिदास ही को श्राप घत्सभट्टि का अनुयायी पयों नहीं कहते ? सम्भव है, यत्समट्टि कोई बहुत बड़ा कवि रहा हो। उसने महाकाव्य बनाये हो। घे कालिदास के समय में प्रचलित रहे हो। अब न मिलते हों। अतएव यह पयों न कहिए कि यत्समष्टि के बाद छठी शताप्दी ही में (घही पुरानो यात) कालिदास थे। परन्तु, हमें आशा है, इस तरह की दलीलें कोई सममदार मादमी न पेश करेगा। फालिदास बहुत प्रसिद्ध कवि थे। उनको कीर्ति जल्द दूर दूर तक फैल गई होगी और उनके कायों का प्रचार भी जाद हो गया होगा। प्रसिद्ध प्रन्यकार की कृति देखने का शौक परिश्तों को स्वभाव हो से होता है। अश्वघोष और घरसमहि, कालिदास की रमर के कवि मथे। मतपय कालिदास की करिता की छाया लेना उन्हीं के लिए अधिक